सेलफोन @ किसान |
“सेलफोन कारोबार के लिहाज से ऐसी सूचनाएं उपलब्ध कराते हैं जो ग्रामीण भारत की कमाई को बेहतर बनाकर उसके कामकाज को भी बेहतर बना देते हैं”. इसका सबसे अच्छा उदाहरण हारवर्ड यूनिवर्सिटी के रॉबर्ट जेनसन द्वारा केरल के मछुआरों पर किए गए एक अध्ययन से देखने को मिलता है.जेनसन ने देखा कि राज्य के मछुआरे अपनी बोटों पर सवार होकर अलसुबह मछली की तलाश में निकल जाते हैं, बाद में पकड़ी गई मछलियों को किनारे पर बने दर्जनों स्थानों पर नीलाम कर देते हैं.सुबह साढ़े सात बजे शुरू होने वाली नीलामी साढ़े आठ बजे खत्म हो गईः चूंकि मछलियों के सड़ने की आशंका थी इसलिए उनको किनारे से जल्द से जल्द रिटेल मार्केट ले जाना जरूरी था.
लेकिन न तो मछुआरों और न ही व्यापारियों को इस बात का आभास था कि किनारे के किस हिस्से में कितनी मछलियां लाई जाएंगी.इसका परिणाम यह होता था कि कई बार केवल 15 किलोमीटर के दायरे में ही मछलियों की संख्या में 50 फीसदी तक का अंतर होता था.कई बार तो बाजार में व्यापारियों को खाली हाथ ही लौटना पड़ता था, तो कुछ जगह ऐसी होती थीं जहां मछलियां का तो ढेर होता था लेकिन व्यापारियों का पता नहीं होता था.
बिना बिकी मछलियां जिनका प्रतिशत कई बार तो कुल मछलियों का छह फीसदी तक होता था,मछली सड़ने लगती थीं और उन्हें फेंकने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं होता था. जेनसन को यह बात समझ में आ गई कि अगर इन लोगों को सेलफोन मिल जाए तो मछलियों की इस बर्बादी को रोककर ये लोग और अधिक लाभ कमा सकते हैं. मछुआरों ने सेलफोन को हाथों हाथ लिया और वो व्यापारियों को समुद्र से वापसी के दौरान ही फोन करके मिलने का ठिकाना तय करने लगे तो सूचना की जिस कमी के कारण मछुआरों और व्यापारियों को पहले नुकसान उठाना पड़ता था,वह अब खत्म हो गई थी.वास्तव में कई मछुआरों ने तो समुद्र में रहते ही अपनी मछलियों की बिक्री तय करनी शुरू कर दी। फिर वो व्यापारी के साथ तय स्थान पर अपनी मछली लेकर पहुंचने लगे.
इसका परिणाम यह हुआ की पहला मछली की कीमतों में लेकर उतार-चढ़ाव में नाटकीय गिरावट आई.अलग-अलग तटों पर मिलने वाली मछलियों की कीमतों में अंतर कम हो गया और इससे मछुआरों को ज्यादा स्थायित्व और सुरक्षा मिली.दूसरा, सेलफोन के इस्तेमाल के कारण किसी बाजार में ग्राहकों या व्यापारियों की कमी के कारण छह फीसदी मछलियों का फेंका जाना भी बंद हो गया.
जितनी भी मछलियां पकड़ी जाती थीं अब बेची जाती थीं और कुछ भी बरबाद नहीं होता था.इसका मतलब न केवल मछुआरों बल्कि व्यापारियों की आय में भी इजाफा। यहां तक की उपभोक्ता को भी फायदा ही हुआः मछलियों की आपूर्ति में छह फीसदी के इजाफे के कारण उनकी कीमत में गिरावट देखी गई.जेनसन का रिसर्च इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे आईटी ग्रामीण इलाकों को भी कम खर्च में फायदे पहुंचा सकता है.
संचार क्रांति के आम जन तक पहुँचने का असर यह
हुआ कि किसानों को लाभ पहुचानें के लिए 2004 में किसान कॉल
सेंटर की स्थापना की गई. भारत के 144किसान
कॉल सेंटरों से देश का कोई भी किसान 1515 नंबर डायल करके मुफ्त मे अपनी कृषि विषयक समस्या का
निदान पा सकता है. सूचना-संचार प्रोद्यौगिकी तकनीक के जरिए मोबाईल,इंटरनेट की
सहायता से किसानों तक आवश्यक जानकारी तत्काल पहुँच जाती है.भारतीय कृषि अनुसन्धान
परिषद द्वारा चलाई जा रही वेबसाइट पर किसानों को उपयोगी जानकारी मिल जाती है.पंजाब
के लुधियाना जिले मे भूजल का स्तर काफी काम हो चुका है. वेबसाइट के माध्यम से किस
फसल को कब कितनी मात्रा मे पानी देना है इसकी जानकारी वेबसाइट ने उपलब्ध
कराइ.लुधियाना मे सक्रिय एक निजी कंपनी ने आवश्यक जानकारी आसानी से पहुंचा दी.इसमें
लुधियाना के 6000 किसानों शामिल है.
आज भारत का
किसान एस.एम.एस,मोबाईल वोयस सर्विसेज के जरिए मौसम की जानकारी प्राप्त कर रहा
है.ई-चौपाल से खेती मे होने वाले खतरे काम हो रहें हैं.जून 2000 से
किसानों के लिए यह प्रारंभ किया गया.इससे 40000 से अधिक गांव जुड
गए हैं,इस कारण 25 लाख से अधिक
किसानों लाभ प्राप्त कर रहें हैं.ई चौपाल इन किसानों की समस्याओं को सुलझा रहें
है.सरकारी आंकड़ों के अनुसार जो गाँव ई चौपाल से जुड़े है वंहा कि किसानों ने पहले
के अपेक्षा 10 प्रतिशत अधिक
मुनाफा कमाया.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद
के मुताबिक उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग डिजिटल भू-सर्वेक्षण,जैव तकनीकी और भूमि
उपयोग के वैज्ञानिक सुझावों का लाभ अब किसानों को मोबाईल के माध्यम से ही मिल
सकेगा इससे किसानों को कब ,क्या करना है इसकी जानकारी मोबाईल के माध्यम से मिल
जाती है.भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नागपुर के निदेशक का मानना है कि खेती मे“GPS” और “GIS” तकनीक के उपयोग से ना सिर्फ लागत काम होगी बल्कि पैदावार बढ़ाकर आत्मनिर्भरता
हासिल करना भी आसान होगा.
फ़ैजाबाद के किसान राजेंद्र
सिंह का कहना है कि “वो धनिया की खेती
करतें हैं,खेती के लिए खेत तैयार कर लिया था और बीज बोने की योजना थी.तो उनको ई
चौपाल से उनको बारिश होने की सूचना मिली.फलत:बुबाई का कार्य रोक दिया.और नुकसान
होने से बच गया.”11
फसल किस मंडी में किस कीमत
पर बेचनी है इसकी विवेचना भी अब मोबाईल और इंटरनेट के माध्यम से किया जा रहा
है.इसके जरिए अलग-अलग मंडियों मे अनाज के ताजे भाव के बारे में पता लगाया जा सकता
है.
हरी सब्जी उत्पादक किसानों का मानना
है कि “सब्जियों को
तोंडने के बाद अगर एक दिन रख दिया जाए तो उसकी कीमत कम मिलती है.इससे बचने के लिए
किसानों ने अपने मोबाईल का उपयोग किया.मंडी के थोक व्यापरियों से संपर्क में रहकर
जिस मंडी में उसकी ज्यादा माँग या कीमत होती वंहा जाकर अपनी सब्जी बेचते”12.इस तरह न्यू मीडिया
का उपयोग करके आर्थिक स्तर को विकास के साथ जोड़ा.
सूचना की उपलब्धता की नाकामी को दूर करने की खासियत रखने वाले सेलफोन में ग्रामीण इलाके के लिए और भी कई खूबियां हैं। गांवों में ऐसे ठिकाने होते हैं जहां काम की तलाश में लोग और काम के लोगों की तलाश में आने वाले लोग दोनों जमा होते हैं। हर रोज सुबह यहां से दिहाड़ी मजदूरों को ले जाया जाता है।सूचना के अभाव में कई बार कई गांवों में लोग काम के लिए इंतजार ही करते रह जाते हैं तो कई गांवों में इनकी कमी पड़ जाती है। सेलफोन इस दिक्कत को दूर करने में मददगार होता है। श्रमिक और ठेकेदार दोनों को ही पता होता है कि दूसरे सिरे पर या स्थिति है और दोनों जानते हैं कि दूसरा व्यक्ति कंहा मिलेगा।सेलफोन की पहुँच ने आम आदमी को विकास तक जोड़ कर समावेशी
विकास की अवधारणा को बल दिया.
टेलीमेडिसिन वाया न्यू मीडिया
स्वास्थ्य के क्षेत्र मे मोबाईल और
इंटरनेट द्वारा टेलीमेडिसिन ने ग्रामीण क्षेत्रों मे सकरात्मक काम किया है ग्रामीण
स्वास्थ्य मिशन मे कार्यरत “आशा” का कहना है की “पहले किसी गर्भवती महिला की
तबियत खराब होती थी तो उसको बुलाने के लिए किसी को आना पड़ता था,इस सारी प्रक्रिया
में काफी समय लगता था.ऐसे में महिला की तबियत बिगडने का डर रहता था लेकिन अब मेरा
मोबाईल नंबर हर ग्रामीण महिला के पास है ऐसे मे यथाशीघ्र स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो
जाती है”13ऐसी स्थिति के कारण प्रसव के दौरान
जच्चा-बच्चा के मृत्यु दर मे कमी आई है.
टेलीमेडिसिन को
स्थापित करने में इंटरनेट की बड़ी भूमिका है जिससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के
रोगियों का इलाज विशेषज्ञों के द्वारा हो जाता है.न्यू मीडिया के द्वारा इस दिशा
मे में भी सकरात्मक परिवर्तन हुए है जो मानवीय विकास को दिखाता है.
आधी दुनिया का पूरा परिवर्तन@न्यू मीडिया
सूचना संचार तकनीक ने ग्रामीण महिलायों के
विकास और आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढाने में सहायता की है. “बाबा जॉब्सडॉट कॉम” नामक एक एजेंसी ने बंगलुरु के उपनगरीय
इलाकों मे “घरेलू कामगार महिलायों को घरेलू काम कर सकती थी का एक मोबाईल डाटाबेस तैयार कर
इंटरनेट पर उस जानकारी को अपलोड कर दिया.जिससे इन महिला कामगारों को आसानी से काम
मिला”14इससे इनकी सामाजिक प्रस्थिति में
आत्मनिर्भरता के आयाम जुड़े. इसने महिलायों को आर्थिक आजादी हेतु प्रेरित किया जो
एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की ओर संकेत करता है.इस तरह से सूचना-संचार तकनीक से उन
लोगों को भी लाभ पहुंचा जो इसका प्रयोग करना नहीं जानते थे,इस प्रकार यह डिजिटल
डिवाइड की आशंका को भी समाप्त करने मे सहायक रही.
ई-शासन @न्यू
मीडिया
सूचना संचार क्रांति वह विकास है जो प्रत्येक नागरिक तक पहुंचता
है.इसने प्रशासन,बैंकिंग,रेलवे,शिक्षा,कृषि,चिकित्सा से संबधित सेवावों तक पहुँच
आसान बनाई है.इसमें सुगमता के तत्व के साथ-साथ पारदर्शिता के तत्व भी हैं.क्योंकि
अपारदर्शी व्यवस्था में ही भ्रष्टाचार पनपता है.इसकी सहायता से 31राज्यों(केंद्र शासित प्रदेश
सहित)मे प्रस्तावित एक लाख जनसेवा केन्द्रों मे से 94000 केन्द्रों ने काम करना शुरू कर
दिया है.इसमें 11
नक्सल प्रभावित राज्यों मे 12510
केंद्र शुरू किये गए हैं.जन सेवा केंद्र योजना विश्व मे दूरसंचार केंद्र स्थापित
करने की सबसे बड़ी योजना है.इसके परिणामस्वरूप जन सेवायों का वितरण बेहतर ठंग से हो
रहा है. 2006में नॅशनल ई-गवर्नेंस
प्लान के तहत प्रस्तावित जनसेवा केंद्र की मदद से सेवायों को अंतिम छोर तक
पहुचानें मे मदद मिली है.यह विकास के आयाम को दिखाता है.