सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

सुपारी किलर ऑफ़ मीडिया

आप पत्रकारों को पता है कि  जब “वॉच ओवर द वॉचमैन” ही अगर ग़लत हो जाए तो क्या होगा ? कुछ ऐसा ही होता रहेगा जैसे कोई चौकीदार ही चोर की भूमिका में आ जाएगा.
आपने विडियो की सत्यता का दावा नहीं किया फिर भी दावे के साथ विडियो को सही साबित करते रहे.जब मीडिया अपराध या घटना की जाँच न करके ख़ुद मुक़दमा चला कर सज़ा देने लगता है, यंहा तक ठीक हो सकता है. पर संकट तब आता है जब आप सत्ता के इशारों पर यह करने-कहने लगते हैं
अर्नव,नेशन वॉंट्स टू नो के जुमले से किस देश और राष्ट्र की बात आप करते हो. जो TAM (टैम)में 12000 और BARK (बार्क) में 22000 घरों का राष्ट्र जो आपने अपनी सुविधा के अनुसार बनाया है. यह देश आपके बनाए नेशन
 से बहुत बड़ा है. आपने कुएँ में गिरे मेंढक कहानी सुनी होगी. अर्नव, आपकी पक्षधरता तब सामने आ जाती है जब वसुंधरा राजे और ललित मोदी की घटना को इतना लम्बा तानते हो और कीर्ति आज़ाद-अरुण जेटली मामले को एक दिन में निपटा देते हो और वो भी अपने परसेप्शन के साथ. जब सरकार का पक्ष रखने-रखवाने के लिए सरकार और न्यायालय का एक डिवेट करवाते हो ताकि सरकार के पक्ष में हवा बनाई जा सके.
रजत शर्मा, आप जो ‘आप की बात’ करते हैं वो अब ग़लत बात साबित हो गई. कन्हैया के मामले में आपने जो सूत्रों के हवाले से ख़बर तानी थी वो फ़र्ज़ी निकली. आपने कन्हैया के ख़त के बारे में बताया कि जोकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार दबाव देकर लिखाया गया था. यह ख़बर आने के बाद आपने बस्सी की पोल नहीं खोली. बस्सी पर आपने तब भी स्टोरी नहीं कि किस तरह पटियाला कोर्ट के अंदर और बाहर जंगलराज का माहौल था और इसके सूत्रधार अब तक ग़ायब हैं.
सुधीर चौधरी, आपका सुपारी किलर का इतिहास पुराना है. उमा खुराना मामला याद होगा आपको.आपने उमा खुराना पर गलत आरोप लगाया कि वो अपनी छात्रा से जिस्मफरोशी करवाती हैं. इस स्टिंग को देखने के बाद देशभक्तों का एक हुजूम आता है जो अपनी भारत माता के प्रति देशभक्ति साबित करने के लिए एक महिला उमा खुराना को लगभग निर्वस्त्र कर देती है.
सुधीर फिर आपने एक स्टिंग किया है और दलाली किया जिसके लिए आप जेल भी जाते हैं, और जेल जाते समय आप धमकी देते हैं ‘तुम्हें पता नहीं है कि मैं कौन हूं’. आपको लोगों के टैक्स के पैसा से Z प्लस की सुरक्षा मुहैया कराया जाता है. जब फ़र्ज़ी विडियो के आधार पर किसी मुद्दे को तानते हैं तो आपको शर्म नहीं आती कि लोगों में कौन सा ज़हर आप भर रहे हैं.
दीपक चौरसिया, याद है आपको जब आप DD न्यूज़ के मुख्य सलाहकारी सम्पादक थे,2004 आम चुनाव के परिणाम प्रस्तुत करने के दौरान सुधीन्द्र कुलक़र्नी ने आपको कहा था ” मुझको लगता था कि आपकी रीढ़ की हड्डी है पर आज पता चला कि आपकी रीढ़ की हड्डी है ही नहीं” फिर कई दिनों तक आपके पास कोई काम नहीं था तब शिमला  में अटल जी से आपकी मुलाक़ात हुई फिर आप “आज तक ” में ले लिए गए.

सुमित अवस्थी आप और दीपक चौरसिया को कन्हैया और उमर खालिद पर अपने स्टुडियो में बुला कर उनके ऊपर जल्लाद की तरह चिल्ला रहे थे. ऐसे जैसा अगर आपका बस चलता तो स्टुडियो में ही इन दोनों को सजाये मौत सुना देते. अब जबकि सच्चाई सामने आ चुकी है. एबीपी और टीवी टुडे ने सारे विडियो को डाक्टर्ड और फर्जी बता दिया है तो क्या उम्मीद की जाये कि आपकी आत्मा जागेगी. शायद नहीं. आप पर कोई असर हो
रोहित सरदाना, सत्ता की कठपूतली मत बनो. ग़ीली मिट्टी सी हाँ-हाँ मत करो, जड़ पकड़ो. उम्मीद नहीं है.
                               पत्रकारिता का सामान्य सा नियम है,जो बहुत ही आधारभूत है कि-ख़बर की सत्यता की जांच करने के बाद ही छापने-दिखाने-सुनाने की बात.फ़्रेंच विचारक पियरे बोर्दू ने अपनी किताब ‘आन टेलिविज़न’ में बताया है कि “चैनल वाले किसी भी घटना को सबसे पहले दिखाने और पेश करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. एक दूसरे से आगे रहने की होड़ का नतीजा यह हो रहा है कि सभी एक दूसरे की नक़ल कर रहे हैं” “दुर्घटना से देर भली मुहावरा” मीडिया के लिए लागू क्यों नहीं किया जा सकता. क्या अब ये सुपारी मीडिया किलर सन्नाटे में चीख़-चीख़ कर यह तानेंगे कि वो वीडिओ जिसके आधार पर हम लोगों में ज़हर भर रहे थे वो नक़ली था और हम दोषी हैं.