(गूगल से साभार) |
समाज में हमेशा परिवर्तन
होता रहता है क्योंकि क्रिया व परिवर्तन हमेशा उपस्थित है.इसी कारण सामाजिक
परिवर्तन अपरिहार्य रहा है और रहेगा.परिवर्तन का उद्देश्यविकास से होता है.विकास
का तात्पर्य आत्मनिर्भरता,समानता और न्याय पर आधारित समाज से होता है.विकास को
लोंगों के भौतिक जीवन में सुधार,समानता पर आधारित समावेशी समाज और आत्मनिर्भर देश
के आधार पर जांचा जाना चाहिए.
सूचना संचार तकनीक से युक्त न्यू मीडिया 21वीं शताब्दी का सबसे प्रभावकारी तंत्र है,जिसने दुनिया
भर में बदलाव के नए युग का सूत्रपात किया.समावेशी विकास भारत जैसे विकासशील
लोकतांत्रिक देशों के लिए एक महत्वपूर्ण जरुरत है.इस दिशा में सूचना-संचार
प्रोद्यौगिकी भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.जिसने सर्वव्यापी
ब्राडबैंड और सबके लिए कम्प्यूटिंग को संभव बनाया.भारत में संचार क्रांति का सबसे
तेज गति से असर ग्रामीण भारत पर हो रहा है.संचार प्रोद्यौगिकी से तकनीकी ज्ञान
पहले की तुलना में बेहतर मिल रही है.ग्रामीण भारत के विकास का सबसे महत्वपूर्ण
पहलू संचार क्रांति है.
सूचना
संचार क्रांति वह विकास है जो देश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचता है.मोबाईल फोन और
इंटरनेट क्रांति ने हर तबके और कोने के लोंगो को इस विकास से जोड़ दिया.इस तकनीक से
बैंकिंग,प्रशासन,कृषि,शिक्षा,स्वास्थ्य से संबधित सेवायों की पहुँच आसान हो गई
है.इसमे सुगमता के साथ-साथ पारदर्शिता के तत्व भी हैं.
इस
विश्व मे एक ही चीज स्थायीहै,वह है परिवर्तन. फेयर चाईल्ड ने सामाजिक परिवर्तन को
व्यापक शब्द माना है.डासन और गेटिस का मानना है कि क्रिया और परिवर्तन समाज
में सदा होते है.इसी कारण समाजशास्त्री
लम्ले का मानना है कि सामाजिक परिवर्तन अपरिहार्य रहा है और रहेगा. यही कारण है कि
समाज मे परिवर्तन होते रहते है.
समाजशास्त्री जानसन के अनुसार “सामाजिक परिवर्तन किसी सामाजिक व्यवस्था की संरचना मे
होने वाला परिवर्तन है जो स्थिर और अपरिवर्तनीय था,वह परिवर्तित हो जाता है.यह वह
परिवर्तन है जिसका व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ता हो”
परन्तु यह परिवर्तन क्यों?
परिवर्तन का मुख्य
उद्देश्य विकास होता है.विकास योजना का उद्देश्य मानव विकास और समाज के लोगों का
अधिकाधिक कल्याण करना है.लोगों के सामाजिक कल्याण मे वृद्धि तथा बेहतर जीवन यापन
के विकास में सूचना-संचार तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.मैकाईबर और पेज का मानना है कि “सामाजिक परिवर्तन से अभिप्राय सामाजिक संबंधो मे होने
वाला परिवर्तन से है”.
परन्तु
यह माना जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य समाज की राजनीतिक,आर्थिक और
सांस्कृतिक परिवर्तन से होना चाहिए.न्यू मीडिया ने दुनिया भर में बदलाव के नए युग
का सूत्रपात किया है.इसने समाज के हर पहलू को परिवर्तित करने में भूमिका निभाई
है.सूचना संचार तकनीक की इस क्रांति न्यू मीडिया ने मानव विकास के हर पक्ष को नया
आयाम दिया है.मोबाईल फोन और इंटरनेट ने हर किसी को विकास और परिवर्तन से जोड़ दिया
है.
यह न्यू मीडिया क्या है ?
न्यू मीडिया संचार का वह संवादात्मक स्वरुप है जिसमे इंटरनेट,सूचना-संचार
तकनीकी का प्रयोग करते हुए पॉडकास्ट,आर.एस.एस.फीड,सोशल नेटवर्क(फेसबुक,माई
स्पेस,ट्विट)ब्लॉगिंग,टेक्स्ट मैसेजिंग इत्यादि का उपयोग करते हुए पारस्परिक संवाद
स्थापित करते हैं.यह संवाद माध्यम बहु-संचार संवाद का रूप धारण कर लेटा है,जिसमें
पाठक/दर्शक/श्रोता तुरंत अपनी टिप्पणी ना केवल लेखक/प्रकाशक को साझा कर सकते है
बल्कि अन्य लोग भी प्रकाशित/प्रसारित/संचारित विषय वस्तु पर अपनी टिप्पणी कर सकते
है.न्यू मीडिया वास्तव में परंपरागत मीडिया का संशोधित रूप है जिसमें तकनीकी
क्रांतिकारी परिवर्तन और इसका नया रूप शामिल है.यह प्रत्येक व्यक्ति को विषय-वस्तु
का सृजन,परिवर्धन का अन्य लोगों से साझा करने का समान अवसर प्रदान करता है.
कई पर्यवेक्षकों का मानना था कि सूचना
संचार प्रोद्यौगिकी से डिजिटल-डिवाइड मे वृद्धि होगी परन्तु वास्तविक अनुभवों से
साफ़ हो गया कि इससे ग्रामीण इलाकों का भी विकास संभव है.प्रश्न यह उठता है कि आखिर
यह डिजिटल डिवाइड क्या है ? वस्तुत: सामाजिक-आर्थिक स्तरों पर सूचना और संचार
प्रोद्यौगिकी के उपयोग के अवसर तथा व्यापक गतिविधियों के लिए इंटरनेट/मोबाईल के
उपयोग का व्यक्तिगत/घरेलू व्यावसायिक और भौगोलिक क्षेत्रों के बीच विभाजन ही
डिजिटल-डिवाइड या डिजिटल असमानता है.सामान्य अर्थ में सूचना प्रोद्यौगिकी के उपयोग
और इससे प्राप्त लाभ सुविधाओं का विभाजन.परन्तु इस तकनीक ने असमानता को दूर करने
का प्रयास किया है.आई.टी.सी.की चौपाल,ज्ञानदूत,आकाशगंगा कई राज्यों की ई-शासन
परियोजना डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने मे मददगार हो रही है.विश्व भर मे यह
स्वीकार किया गया है कि सूचना और संचार प्रोद्यौगिकी गरीबी-अमीरी के बीच के अंतर
को काम करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
यह सत्य है कि समय
के अंतराल के साथ न्यू मीडिया की परिभाषा और रूप दोनों बदल जाएं जो आज नया है
संभवत भविष्य में नया ना रह जायेगा यथा इसे और संज्ञा दे दी जाए.भविष्य मे इसके
अभिलक्षणों में बदलाव और अन्य मीडिया मे विलीन होने की संभावना से भी इंकार नहीं
किया जा सकता परन्तु आज के वर्त्तमान परिदृश्य मे न्यू मीडिया ने ना केवल विकास
बल्कि सामाजिक परिवर्तन में उत्प्रेरक का काम क्या है.
वर्चुअल लोकतंत्रीकरण और ई-चौपाल @ न्यू मीडिया
अरब में जन विद्रोह हवा चली, उसका नायक ट्यूनीशिया का एक सब्जीवाला था..जब 26 वर्षीय मोहम्मद बौजीजी को आईटी की पढ़ाई करने के बाद भी काम नहीं मिल रहा था,तो
वे सब्जी बेच कर गुजारा करने लगे.लेकिन पुलिस ने उसे परेशान
किया क्योंकि उसके पास सब्जी बेचने का लाइसेंस नहीं था,इस कारण पुलिस वाला उससे
घूस माँग रहा था.जब बौजीजी ने पैसा नहीं दिया तों पुलिस उसको परेशान करने लगी,परेशान
होकर ..परेशान होकर बोजीजी ने आपने को आग लगा
लिया,17 दिनों तक वो अस्पताल
में रहें,इस दौरान यंहा के राष्ट्रपति बेन अली भी इसने मिलाने आएं,परन्तु बौजीजी
की मौत हो गई.धीरे-धीरे इसकी मौत की खबर पूरे
ट्यूनीशिया में फ़ैल गई.
हजारों लोग सड़कों पर जमा हो गए और लोगों ने न्यू मीडिया को
वर्चुअल चौपाल बना दिया.इंटरनेट के माध्यम से विरोध का नया दौर चला.फलत: 23 साल से सत्ता पर काबिज़ बेन अली को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी.
गूगल
के युवा कार्याधिकारी वेल गोनिम ने सोशल मीडिया के माध्यम से मिस्र में सरकार
विरोधी प्रदर्शनों में मदद की जिसके फलस्वरूप हुस्नी मुबारक को राष्ट्रपति पद
छोड़ना पड़ा.गोनिम और अन्य ने फेसबुक, ट्विटर
सहित विभिन्न प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल लोगों की भावनाएं जाहिर करने के लिए
किया.यह पारदर्शिता का एक अच्छा उदाहरण है.पश्चिम एशिया और उत्तर अफ्रीका में गूगल
के मार्केटिंग प्रमुख गोनिम ने फेसबुक के अपने पृष्ठ के माध्यम से उस विद्रोह को
तेज करने में मदद की जिसके बाद मिस्र के लोगों ने 18 दिन तक
विरोध प्रदर्शन किया। इस विद्रोह का नतीजा मुबारक के 30 साल
पुराने शासन के अंत के रूप में निकला.गोनिम में कहा कि “फेसबुक, ट्विटर, यू ट्यूब तथा गूगल जैसे आनलाइन सोशल नेटवर्क्स
के बिना विरोध
प्रदर्शन नहीं हो पाते.उन्होंने कहा था कि अगर सोशल नेटवर्क्स नहीं होते तो
विद्रोह को हवा भी नहीं मिल पाती.”
देखते-देखते
मोरक्को,सीरिया ,लीबिया,जोर्डन,यमन,अल्जीरिया,बहरीन में सडको पर क्रांति शुरु हो
गई.यह नई तरह की क्रांति थी,1989-1990 में जब पूरी दुनिया से साम्यवादी देशों का पतन हो रहा,था,उस समय भी मध्य पूर्व
एशिया को क्रांति छूकर भी नहीं गई थी.परन्तु ““बदलाव की ये हवा सिर्फ मध्य पूर्व एशिया तक
ही नहीं सीमित रही। उसकी चपेट में पूंजीवादी देश भी आए और वो जो कभी साम्यवादी थे।वहां
भी लोग सड़कों पर उतरे जहां लोकतंत्र है.अमेरिका में लोग तो सड़कों पर निकलना ही भूल
गए थे।अकुपाई वॉल स्ट्रीट यानी वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो के नारे ने सोए आम अमेरिकी
को पूंजीवादी ढांचे में कॉर्पोरेट हाउसेस के खिलाफ लामबंद कर दिया.जकोटी पार्क रातोंरात
अमेरिका का तहरीर चौक बन गया.इजराइल की राजधानी तेल अवीव में इतिहास की सबसे बड़ी रैली
निकली भारत में भी इस तरह का आन्दोलन देखने को मिला जो न्यू मीडिया की उपज मानी
जा सकती है.
इसके कारण शायद यह हो सकते हैं---टेक्नोलॉजी ने पिछले दस सालों में खासतौर पर कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी ने जबर्दस्त छलांग लगाई है.
फेसबुक और सेलफोन ने पूरी दुनिया को एक नए चौपाल में तब्दील कर दिया है “वर्चुअल चौपाल”, वो चौपाल जहां हर तरह के विचारों के आदान प्रदान की खुली आजादी है. “फेसबुक, ओर्कुट, ट्विटर आदि संचार का एक ऐसा सामाजिक मंच
है,जिसपर संवाद,संचार,विचार-विमर्श,व्यापार,प्रचार और सामाजिक गोलबंदी आदि की जा
सकती है.यह सूचनायों को साझा करने का सामाजिक मंच है.”