महिलाओं की जुबां : रेडियो बुंदेलखंड |
विकास
की क्रिया में जनसंचार माध्यमों का योगदान सर्वविदित है. 70 के दशक में हरित क्रांति इसका सशक्त
उदाहरण है. विकास की प्रक्रिया को गतिशील और प्रभावी बनाने हेतू यह आवश्यक है कि
सूचनायों का सम्प्रेषण स्थानीय जरूरतों के अनुसार हो ताकि प्रेषक और प्रापक के बीच
लोकतांत्रिक भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. सामुदायिक रेडियो में एक प्रभावी और
सार्थक सूचना सम्प्रेषण का एक सशक्त माध्यम बनने की पूरी क्षमता है. ग्रामीण
क्षेत्रों में सामुदायिक रेडियो बहु उद्देश्यों के साथ काम कर सकता है. इस लेख में यह दिखने का प्रयास किया गया है की किस तरह रेडियो के माध्यम से महिलायों ने
अपने को सशक्त बनाने का प्रयास किया.
सामुदायिक रेडियो का मतलब एक छोटे से
समुदाय या कस्बे की जरूरतों के मुताबिक रेडियो पर किया जाने वाला प्रसारण है, जिसमें वंहा के लोगों की भागीदारी भी होती है. वैसे तकनीकी अर्थ
में जाएँ तो असल में सामुदायिक रेडियो वह है जिसके कार्यक्रम किसी विशेष समुदाय के
लिए बनाया जाए और जिन्हें बनाने का काम स्वंय समुदाय
ही करे. वर्तमान परिवेश में यह मीडिया जनसंचार का प्रभावी माध्यम बन गया है. यह
लोकतंत्रिक अभिव्यक्ति का एक सशक्त जरिया बन गया है जो ग्रामीण क्षेत्रों में
खासकर बदलाव का हथियार बन सकती है क्योंकि अपने लिए कार्यक्रम बनाने के लिए समुदाय
को न तो अपनी भाषा बदलनी पड़ रही है न ही पहचान.
भारत विविधताओ का देश है, यह विविधता जीवन के प्राय: हर क्षेत्रों दिखता है. सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक यंहा तक की भौगोलिक विविधता
इसका सौंदर्य है. इस विविधता का परिणाम बहुपक्षीय रहा है. इसके फलस्वरूप कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, हस्तशिल्प व्यवसाय में विविधता दिखलाई
पड़ती है. इन विषमताओं को दूर करने और समाज के हर तबके को विकास के समान अवसार
उपलब्ध करने और विकास की मुख्यधारा से जोडने हेतु आवश्यक है कि सूचना समर्थित
विकास की प्रक्रिया लोकतंत्रिक और स्थानीय जरूरतों के मुताबिक संचालित हो ताकि
लक्ष्य समुदाय की पहचान और विकास कार्यक्रम में सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित हो
सके.इस प्रक्रिया में सूचना और जनसंचार माध्यमों की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो सकती
है. वर्त्तमान में ऐसा ही एक माध्यम सामुदायिक रेडियो के रूप में हमारे सामने आया
है जो मीडिया में लोकतंत्रिक भागीदारी का सर्वोतम उदाहरण बन सकता है.
आकाशवाणी के बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की अवधारणा एवं व्यावसायिक एफ.एम. रेडियो की
गलाकाट प्रतिस्पर्धा से अलग सामुदायिक रेडियो क्षेत्रीय तथा स्थानीय आवश्यकता के
अनुरूप विकासपरक सूचना सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है.इसका प्रसारण क्षेत्र सीमित होता है. इसमें
कार्यकमों की संरचना स्थानीयता के अनुरूप तथा उदेश्य विकास समर्थक होता
है.प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों का स्वरुप गैर-व्यावसायिक और विकास के मुद्दों
यथा-कृषि, वानिकी, पशुपालन, विद्युत, जल-व्यवस्था, आपदा प्रबंधन, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय कौशल आदि को समर्पित होता है. स्थानीय बोली-भाषा में कार्यक्रम का प्रसारण
स्थानीय लोगों का कार्यकर्म निर्माण में भागीदारी सामुदायिक रेडियो की अन्य
विशेषता है. मनोरंजन, विज्ञापन और समाचार के कार्यक्रम
सामुदायिक रेडियो में लगभग प्रतिबंधित होते है. दरअसल सामुदायिक रेडियो का पूरा जोर
सामयिक,प्रासंगिक और स्थानीय मुद्दों पर विकास
समर्थित संचार करना होता है.
सामुदायिक रेडियो को वैधानिक बनाने की
प्रक्रिया का प्रारंभ 1990के
दशक के मध्य में हुआ. फरवरी 1995में
सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में हवाई तरंगों को सार्वजनिक सम्पति घोषित कर
दिया.इस निर्णय ने भारत में सामुदायिक रेडियो का रास्ता खोल दिया. किन्तु प्रारंभिक
विकास काल में सामुदायिक रेडियो के संचालन की अनुमति सिर्फ शिक्षण संस्थानों को ही
दी गई थी.
“गैर-सरकारी क्षेत्र का पहला सामुदायिक
रेडियो 15 अक्टूबर 2008को “रेडियो संघम” के नाम से पास्तापुर
गाँव, मेडक जनपद, आन्ध्र प्रदेश में शुरू किया गया.इसका संचालन डेक्कन डेवलपमेंट
सोसायटी द्वारा किया जा रहा है. इसका उद्देश्य इस क्षेत्र के 75 गांवों की महिला समूहों को विकासपरक सूचना
देना है. आंध्रप्रदेश के मेडक जिले में दलित महिलायों के द्वारा सामुदायिक रेडियो
प्रारंभ किया गया जो स्थानीय भाषायों में स्थानीय मुद्दों को उठाती है”. आंध्रप्रदेश के मेडक जिले के जाहिराबाद
में अशिक्षित महिलायों द्वारा सामुदायिक रेडियो प्रारंभ किया गया. इसमें घरेलू
हिंसा, फसल, स्वास्थ्य, शिक्षा, सूखा जैसे मुद्दों पर कार्यक्रम
प्रसारित होते है. यह एक मात्र रेडियो स्टेशन है जो दलित महिलायों द्वारा संचालित
की जाती है, जिन्होंने 10 वीं से अधिक की शिक्षा नहीं ली है. 2008
में प्रायोगिक तौर पर प्रारंभ की गई
सामुदायिक रेडियो आज 30 कि.मी.
के दायरे के 500 गांवो
में प्रसारित हो रहा है.इसके विषयों में घरेलू हिंसा, फसल, स्वास्थ्य, शिक्षा, सूखा शामिल है जो स्थानीय भाषा या बोली
में होती है. रेडियो संघम’ शाम के एक घंटे का समय ‘केवल टी.वी.’ पर भी प्रसारित होता है जिसमें
साक्षात्कार, गीत और नाटक प्रसारित किये जाते है.
महिलायों का अपना रेडियो स्टेशन होना चाहिए,इसका विचार ‘डेक्कन डेवलपमेंट सोसायटी’ जो
कि एक स्वंयसेवी संस्था थी,के माध्यम से आया. इसके बाद स्वंयसेवी
संस्था ने दो महिलायों को रेडियो की तकनीकी प्रशिक्षण दिलवाई. रेडियो संघम में
ए.नरसम्मा और जी.नरसम्मा पहली रेडियो प्रस्तोता बनी. अब तक 12 महिलायों को इस काम में प्रशिक्षित किया.
सामुदायिक रेडियो ‘संघम रेडियो’
नियमित प्रसारित होने
वाले रेडियो से पूरी तरह अलग है. यह स्थानीय बोली का प्रयोग करते हैं जिसमें
तेलंगाना, मराठी, कन्नड़, उर्दू का प्रयोग किया जाता है. जब ये महिलाएं रेडियो में काम
नहीं कर रही होती तब ये महिलाएं खेतों में काम कर रही होती हैं. जी.नरसम्मा का
मानना है कि ‘इसका संचालन व प्रबंधन पूरी तरह से
सामुदायिक स्तर पर होता है. हमलोग बाहर से प्रशिक्षित विशेषज्ञों को नहीं बुला सकते
हैं क्योंकि हमारी समस्या व मुद्दे उन लोगों को बेहतर तरीकों से समझ में नहीं आ
सकते जो इस समुदाय से बाहर के हों. हमारे श्रोता इसके संदेश को ग्रहण करने में
ज्यादा सक्षम होगा, जो हमारी भाषा में बोलेगा, उस व्यक्ति के साथ जुडाव महसूस करेगा’. पी.सुशीला जो रेडियो संघम में उदघोषक हैं का कहना है कि ‘महिलायें साक्षात्कार से संबद्ध उपकरण लेकर गांवों में जाती
है. इन साक्षात्कारोंमें निम्न बातें शामिल होती है—यदि
किसी किसान ने फसल के साथ कोई प्रयोग किया और वह बेहतर परिणाम आया तब उस विचार को
समुदाय में बांटता है.’ इसके साथ-साथ यदि पंचायत सदस्य को कोई
सूचना स्वास्थ्य या सफाई से संबद्ध में देना हो तो इसके माध्यम से देता है. यदि
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा महिलायों और नवजात शिशुयों से संबद्ध सूचनायों
को प्रसारित करना हो तो इसी का प्रयोग किया जाता है.रेडियो किसानों को फसल से
संबद्ध बातें स्थानीय बोली में प्रसारित करती है ताकि वह समझ सके.फसल की बुआई से
लेकर उसको बेचने की सलाह भी दी जाती है.
इन महिलायों के
द्वारा ‘रेडियो संघम’के माध्यम से स्थानीय भाषा,संस्कृति
और परम्परा का संरक्षण भी किया जा रहा है.इन महिलायों के पास स्थानीय गीत, कहानी, नाटकों का एक संग्रह तैयार हो गया है
जिसका प्रसारण प्रति रात्रि 8 बजे
होता है.इस रेडियो ने महिलायों में आत्मविश्वास की भावना दी है.
सरकारी क्षेत्र का एक अन्य सामुदायिक
रेडियो “मध्य प्रदेश के जनपद
ओरछा में ‘बुन्देलखंड रेडियो’के नाम से संचालित है. यह सामुदायिक रेडियो डेवलप्मेंट
आल्टरनेटिव नमक संघटन द्वारा चलाया जा रहा है”. जिसका उद्देश्य बुन्देलखंड क्षेत्र के
लोगों के विकास के विकल्पों की तलाश में सहायता हेतू सूचना उपलब्ध करना है. इस
रेडियो का संचालन भी पूरी तरह से महिलायों द्वारा किया जाता है. इस प्रकार कहा जा
सकता है की मीडिया के माध्यम से महिलाओं को सशक्तिकरण किया जा रहा है.
विकास के क्षेत्र में सूचना का सबसे
अधिक महत्त्व होता है.बिना सूचना के किसी भी क्षेत्र में विकास संभव नहीं हो सकता. विकास
योजना का मुख्य उद्देश्य मानव विकास तथा लोगों द्वारा जीवन यापन का उच्चतर स्तर
हासिल करना है इसके लिए गरीबों और हाशिये पर रह रहें लोगों के विकास के लाभों और
अवसरों के अधिक समान वितरण और बेहतर रहन-सहन के वातावरण और सशक्तिकरण की जरूरत
है.ऐसी अवधारणा है की ग्रामीण महिलायें जो की परिवर्तन हेतु उत्प्रेरक का कार्य कर
सकती है को सशक्त करने की जरूरत है. विकास को समावेशी बनाने हेतु ग्रामीण महिलाओं
द्वारा सार्थक पहल की परंपरा विकसित हो चुकी है.