मंगलवार, 22 सितंबर 2015

सोशल मीडिया में मोदीराज उर्फ़ गुंडाराज



( चित्र - गूगल इमेज से साभार)




  
 

‘जब नमो देश का भ्रमण कर रहे हैं,मेरे नीमो को टहलाने के लिए पार्क ले जाने की जरुरत है.अलग लोग,अलग प्राथमिकताएं’ राजदीप सरदेसाई के इस ट्विट के बाद ‘इंटरनेट हिंदू’ जिन्हें राजदीप सरदेसाई ‘भक्त’ कहते हैं ने सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा की बौछार कर दी.इसके बाद धमकी भरे टेलीफोन आए ‘तुमने हमारे नेता को कुत्ते से जोड़ा है.तुम्हें और तुम्हारे परिवार को इसका खामियाजा भुगतना होगा.हम तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर देंगें.’राजदीप सरदेसाई को जो लोग अभद्र भाषा का प्रयोग सोशल मीडिया पर कर रहे थे उन लोगों की प्रोफाइल ‘प्राउड हिन्दू नेशनलिस्ट’ और ‘वांट नमो फॉर पीएम’ जैसे नामों से जुडी हुई थी. ‘हिन्दू डिफेंस लीग ट्विटर पर इस तरह का मधुमखियों के झुंड जैसा था जो उनकी राजनीतिक आस्था पर सवाल उठाने वाले किसी भी व्यक्ति पर एक साथ धावा बोल देता था.
सोशल मीडिया पर यह कोई अपवाद नहीं था,बल्कि अब एक सुनियोजित प्रयास का एक हिस्सा बन चुका है.नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ में ‘सेल्फी विद डॉटर’ मुहिम के लिए आग्रह किया था कि सभी #सेल्फीविथडॉटर के साथ तस्वीरें पोस्ट करें. इस पर सीपीआई (एमएल) के कविता कृष्णन ने ट्विट किया “सेल्फी विथ डॉटर को ‘लेमडकपीएम’ के साथ शेयर करते वक्त सावधान रहियेगा.उन्हें बेटियों की पीछे पड़ने की आदत है.” इसके बाद मोदी समर्थकों ने कविता को गलियाँ दी और अभद्र भाषा का प्रयोग किया. सिनेकर्मी आलोक नाथ ने ‘जेल द बिच’ कहा तो विनय चौहान (@Vinaych73119133) ने कहा ‘तू शकल से ही prostitute लगती है. कभी नहा तो लिया कर. Dp पर तेरी शकल देखने का भी मन नहीं करता.’ तो ऑफिस ऑफ़ एक्स-सेकुलर के नाम से (@tanuj15) ने लिखा ‘कविता कृष्णन तू बेटी और बहनों में थोड़े आती है. कविता यू आर थर्ड जेंडर.गो टू US. बिल्कुल सही लिखा है इसने @vinaych73119133.’ कविता कृष्णन ने सोशल मीडिया पर इस तरह की बढती प्रवृति पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि‘यह एक तरह का संगठित प्रवृति बन गई है.जिस तरह यह लोग सडकों पर राजनीतिक हत्यायें करवाते हैं उसी तरह यह लोग विचारों को रोकने के लिए झुंड में पहुंच जाते हैं ताकि उनकी आवाज को दबाया जा सके.जिस तरह यह गोविन्द पानसरे,कलबुर्गी की हत्या करके विचारों को रोकने का काम करते हैं उसी तरह यह संघटन के तौर पर सोशल मीडिया पर विचारों को दबाने के लिए या कमजोर करने के लिए धावा बोल देते हैं.असहमति को देशद्रोह से जोड़कर देखने की प्रवृति बढ़ी है,यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है.’
सोशल मीडिया के इस दौर में सत्ता से असहमति-आलोचना का सीधा संबंध देशद्रोह और राजसत्ता से बग़ावत की तरह देखने की खतरनाक प्रवृति बनती दिख रही है.इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हाशिये पर चला जा रहा है.श्रुति सेठ ने मोदी के ‘सेल्फी विथ डॉटर’ को लेकर लिखा कि “सेल्फी कोई ऐसी डिवाइस नहीं है जिससे बदलाब आएगा मिस्टर पीएम सुधार की कोशिश करें.सेल्फी के जुनून से बाहर आएं मिस्टर पीएम. एक फोटोग्राफ से ज्यादा बनें.वे लोग जो सेल्फी प्लान का बचाव कर रहें हैं उनको यह बताना चाहूंगी कि जंहा पर फ्रंट फोन कैमरा मौजूद नहीं है ऐसे अशिक्षित जगहों पर बदलाव की जरुरत है.सोचिए” पर भक्तों को मानों इस “सोचिए” के प्रश्नचिन्ह ने उनके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया.सायबर गुंडों ने सारी मर्यादा लांघ कर श्रुति सेठ पर ऑनलाइन हमले किए.सायबर गुंडों से आहत होकर लिखा “जिस तरह से लोगों ने मुझ पर सोशल नेटवर्किंग साईट पर हमले किए,वो अफसोसजनक था. कम से कम ये ध्यान रखना चाहिए था कि मैं किसी की माँ हूं,किसी की बेटी हूं,किसी की पत्नी हूं,लोगों ने सारी मर्यादाएं लांघ दी” यह भारत जैसे देश में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजसत्ता की आलोचना करना इतना महंगा पड़ जाता है किसी को लिखना पड़ जाता है कि “अलग सोच रखने के लिए जो नफरत आज मैंने झेली,वह साफ दिखाती है कि यह देश महिलायों के लिए है ही नहीं.” कविता कृष्णन और श्रुति सेठ के प्रति जो मानसिकता सोशल मीडिया पर उजागर हुआ इससे यह सच सामने आ गया कि हम अपने समाज में अपनी बेटियों का कितना सम्मान करते हैं.
इसी तरह का ऑनलाइन गुंडाराज का मामला तब सामने आया जब अभिनेत्री नेहा धूपिया ने महाराष्ट्र सरकार को लेकर ट्विट किया “एक बारिश होती है और शहर थम जाता है,अच्छी सरकार सिर्फ सेल्फी लेने या हमें योग कराने के लिए नहीं है,सरकार को यह देखना चाहिए की नागरिक कितने सुरक्षित हैं.” जब मोदी ने दुबई में भारतीयों को संबोधित किया था और उनके समर्थकों ने उनके लिए रॉकस्टार कहा तो शोभा डे ने ट्विट किया “क्या हम भारत के प्रधानमंत्री को रॉकस्टार कहना बंद कर सकते हैं.हैलो दुबई,वो बॉलीवुड से नहीं हैं.” कई समर्थकों ने बड़ी अभद्र भाषा में शोभा डे को जवाब दिए. शोभा ने इनको जवाब देते हुए लिखा “ साल की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर होगी फिल्म – मैं चुप रहूँगा.जिसमें मोदी हीरो होंगे.”
तो क्या मोदीराज में सिर्फ और सिर्फ मोदीराग ही चलेगा?क्या असहमति और आलोचना की कीमत अभद्र भाषा और गाली गलौज होगा?क्या मोदीविरोध का मतलब देशद्रोह होगा?यदि आप भाजपा और उनके रक्तनाभि ‘राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ’ के सवर्णवादी पुरुषसत्तात्मक संघटन के पाखंडों को उजागर करने का प्रयास करेंगें तो आप के विचारों को “वल्गर” बता कर आपको सोशल मीडिया पर लिखने से रोकने की भी साजिश की जा सकती है.दिलीप मंडल के उदाहरण से इसको समझा जा सकता है. इनके पोस्ट को वल्गर बताकर इनके विचारों को रोकने की जो कोशिश की गई है वह इसी साजिश का हिस्सा है.क्या मोदी की जुकेरवर्ग से मुलाकात ऑनलाइन गुंडाराज को संस्थागत स्वरूप देने की कोई कोशिश तो नहीं है? 
जंहा पत्रकार रविश कुमार सोशल मीडिया में गाली-गलौज,अभद्रता और ऑनलाइन गुंडागर्दी से तंग आकर अपने सारे सोशल मीडिया के एकाउंट बंद करने पर विवश हो गए. यह निर्णय लेना किसी पत्रकार के लिए कितना निर्णायक क्षण होगा जब कोई पत्रकार लिखना छोड़ दे.रविश कुमार ने लिखा “ट्वीटर और फेसबुक पर नक़ली आईडी से मेरे नाम का इस्तमाल किया जा रहा है.तस्वीर लगाकर मेरे नाम से अनाप शनाप बातें कही जा रही है.ऑनलाइन दुनिया के गुंडाराज से किसे दिक्कत नहीं हो रही है?लोग इतने मूर्ख और बदहवास हो चुके हैं कि हिंसक टिप्पणियाँ भी करते हैं.” दरअसल याकूब मेनन की फांसी की सजा माफ़ी याचिका में हस्ताक्षर को लेकर रविश कुमार के खिलाफ एक अफवाह उड़ाई गई थी,जो लिस्ट पूरी तरह फर्जी थी. इसी तरह गौमांस के मुद्दे पर फोटोशॉप सम्प्रदाय ने एक और अफवाह उड़ाई है. दरअसल रविश कुमार ने जिस तरह से हाल के दिनों में अपने शो “प्राइम टाइम” सरोकार को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की है यह मोदीराग गाने वाले चाटुकार मीडिया के सांचे में फिट नहीं बैठता. यही कारण है कि हाल के दिनों में सोशल मीडिया में ऑनलाइन गुंडागर्दी के निशाने पर रविश कुमार रहें हैं. यह भी एक पत्रकार की मौत भी है. पर यह रविश कुमार की हार और उन सोशल मीडिया के गुंडों की जीत है जो यह चाहते हैं कि सत्ता के खिलाफ उठने वाली सभी आवाजों को देशद्रोही साबित किया जाए.
  पर रविश कुमार के तरीके के विपरीत दिलीप मंडल अपने विचारों की रक्षा के लिए खड़े हैं.दिलीप मंडल ने बताया कि ‘सोशल मीडिया पर साइबर गुंडागर्दी से बचने का एक ही तरीका है कि आप बचने की कोशिश न करें. गालियों से न डरें.गालियाँ आपका नहीं, गाली लिखने वालों का परिचय है.अगर गालियाँ न दी जा रही हों, तो आपके लिए यह चिंतित होने का समय है.क्या आप ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे हैं कि न्याय और लोकतंत्र के विरोधी आपको गालियां दें?इसमें किसी की तो जीत होनी है,आपका पीछे हटना उनकी जीत है.”
मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार का मानना है कि “सोशल मीडिया माध्यमों को लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान के नागरिकों तक में अपने अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पहुँचाने की संभावना रखता है,उसकी इस ताकत को गुंडागर्दी की हद तक ममे जाकर छिन्न-भिन्न किया जा रहा है.”सोशल मीडिया एक लोकतांत्रिक माध्यम की संभावनाओं से युक्त है.मुंबई के माजिम मिल्ला, कोडाईकनाल की सोफिया अशरफ, और लखनऊ के कृष्णा कुमार और कानपूर के कमल कुमार वाल्मीकि के मुद्दे को जिस तरह सोशल मीडिया ने उठाया उससे यही प्रमाणित होता है.परन्तु  विनीत कुमार का मानना है कि “सत्ता और उसकी व्यवस्था ने इस आवाज को कुचलने की भरपूर कोशिश की और जिसमे काफी हद तक मेनस्ट्रीम मीडिया तक ने साथ दिया लेकिन जैसे-जैसे लेखक बने नागरिक इसके उपभोक्ता बनने शुरु हुए, राजस्व की एक बड़ी संभावना दिखाई देने लगी और तब नेटीजन्स जैसे ऐसे वर्ग समूह का विस्तार हुआ जो एक ही साथ बाजार का बड़ा उपभोक्ता भी था,मेनस्ट्रीम मीडिया का कंटेंट सप्लायर भी हुआ और व्यवस्था से असहमति में अपनी बात रखनेवाला नागरिक भी.इस दायरे के विस्तार से राजनीति की भी रूपरेखा बदली और नतीजा ये हुआ कि सब इस माध्यम को अपने-अपने तरीके से व्यवस्थित करने लगे. आज स्थिति ये है कि कभी सतही, उथला और गैरजरूरी समझा जानेवाला माध्यम सरकार और उनकी मशीनरी के लिए प्रेस रिलीज या प्रेस कॉन्फ्रेंस तक का विकल्प बनता जा रहा है.राजनीतिक पार्टियों के चैनल यहां खुलने लगे हैं. सैंकडों अकाउंट के जरिए वो सबकुछ किया जा रहा है जो कभी रैलियों, पोस्टर और बैनर की राजनीति के जरिए होती आयीं है.ये बहुत स्वाभाविक है कि जब राजस्व के स्तर पर, कंटेंट के स्तर पर ये अलग-अलग सेक्टर के लोग व्यवस्थित रुप देने लगे तो आपस में गालीगलौच, गुंडागर्दी, अश्लील कमेंट जिसे ट्रांलिंग के रुप में देखा जाने लगा है,उसे भी व्यवस्थित किया जाने लगा.राजनीतिक दलों के वॉररूम से ये काम हो रहा है.”
आखिर ऐसा क्यों है कि किसी भी मुद्दे पर सत्तारूढ़ दल की असहमति में कुछ भी लिखे जाने पर मुद्दे के बजाय गालियों की बौछार पड़नी शुरु हो जाती है,धमकियां मिलने लग जाती हैं. मुद्दे पर बात न करके गालियां, धमकाने, ट्रॉलिंग का सिलसिला इसलिए बढ़ा है.ऐसा करनेवाले राजनीतिक दलों, संस्थानों को इस बात की सुविधा है कि वो वाररूम के मीडिया कुली से चाहे जो करवाएं,आलोचना सोशल मीडिया की ही होनी है.ऐसे में सपाट ढंग से सोशल मीडिया को गुंडागर्दी का अखाड़ा बताकर विश्लेषण करने का मतलब है उस आखिरी पायदान पर खड़े नागरिक की संभावना को कुचलने की पक्ष में खड़े होना जो कि जनतंत्र के खिलाफ जाता है.
“अब इस देश में कोई बात कहनी हो तो लोगों की भीड़ के साथ ही कहनी पड़ेगी,वर्ना दूसरी भीड़ कुचल देगी” पत्रकार निखिल वाघले की इस बात में सच्चाई है कि “जो सच बोलेंगें,वो गली खायेंगे.”क्योंकि सोशल मीडिया में मोदी का गुंडाराज चल रहा है.