गुरुवार, 18 सितंबर 2014

समाचारपत्र और आजादी की लड़ाई



पत्रकारिता राष्ट्र की आत्मा और जीवनी शक्ति को पुनर्जीवित करने का सशक्त माध्यम है.वह राष्ट्रीय जीवन की समस्त अनुभूति का दर्पण होती है. समकालीन पत्रकारिता के माध्यम से राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों की पारदर्शक सच्चाई उजागर हो उठती है.इस काल के समाचारपत्रों में में सामयिक राजनीतिक सत्ता के प्रति विद्रोह की चेतना को देखा जा सकता है.
यधपि 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय समाचारपत्रों का प्रसार ज्यादा नहीं हुआ था परन्तु इस दौर में भी कुछ समाचारपत्र थे जो ब्रिटिश विरोधी चेतना का प्रचार कर रहे थे. इनमे से ‘पयाम-ए-आजादी’ पत्र में राजनीतिक संघर्षकारिता की धारा अत्यंत तीव्र है.इस दौर में ‘समाचार सुधावर्षण’, ‘दूरबीन’ और ‘सुल्तान-अल-अख़बार’ को ब्रिटिश कोप का शिकार बनना पड़ा. आया फिरंगी दूर से ऐसा मंतर मारा ,लूटा दोनों हाथों हे प्यारा वतन हमारा इसी पत्र में प्रकाशित कविताओं से राजनीतिक चेतना का विकास व्यापक रूप से हुआ.
हम है इसके मालिक,हिंदुस्तान हमारा,
पाक वतन है कौम का जन्नत से भी प्यारा 
‘हिन्द पेट्रियट’ ने 1861 में नील दर्पण नमक नाटक प्रकाशित किया जो नीलहे गोरे व्यापारियों के किसानों के शोषण की व्यथा थी. इस समाचारपत्र ने ब्रिटिश नीतियों का विरोध किया. ‘अमृत बाजार पत्रिका’ पर सरकारी कर्मचारियों की आलोचना करने के लिए मुकदमा चलाया गया. ‘बंगाली’ समाचारपत्र ने स्वतंत्रता के पक्ष में लहर पैदा की. ‘ज्ञान प्रकाश’ ‘केसरी’ और ‘मराठा’ सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रबल प्रचारक बन गए.
1907 से इलाहबाद से प्रकाशित ‘स्वराज’ नमक साप्ताहिक पत्र में राष्ट्रीय पराधीनता के आवासन और स्वाधीनता के आगमन की कामना प्रकट करते हुए संपादक के विज्ञापन इस प्रकार प्रकाशित की गई है- चाहिए स्वराज के लिए एक संपादक.वेतन दो सूखी रोटियाँ.एक ग्लास ठंडा पानी और हर सम्पादकीय के लिए दस साल की जेल.
 स्वतंत्रता किसी राष्ट्र की प्राणवायु होती है.इसके लिए पत्रकारिता ने जनमानस में चेतना का संचार किया.स्वराज की स्थापना हेतू ‘नृसिंह’ ने लिखा—स्वराज की आवश्यकता भारतवासियों को इसलिए है की विदेशी सरकार उनके आभाव को समझने में असमर्थ है.स्वराज के बिना भारत की गति नहीं है”.
राष्ट्रप्रेम की भावना को प्रसारित करने में दशरथ प्रसाद की ‘स्वदेशी’ ने भी योगदान दिया.
                   जो भरा नहीं भावों से बहती जिसमे रसधार नहीं
                   वह ह्रदय नहीं,पत्थर है,जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं 

  पराधीनता के काल में स्वाधीनता हेतु भारतीय जनमानस का आह्वान किया.
    “ऐ मादरे हिन्द न हो गमगीं दिन अच्छे आने वाले हैं
     आजादी का पैगाम तुम्हेँ हम जल्द सुनाने वाले है
              राजनीतिक स्तर पर जागरूकता फैलाने हेतु क्रांतिकारियों ने भी अपनी वैचारिक अवधारणा को जनमानस के सामने हिन्दी पत्रकारिता के माध्यम से प्रस्तुत किया. ‘विजय’ पत्र का कहना था कि- लेकर पूर्ण स्वराज स्वत्व अपना पहचानें     
                  आजादी या मौत यही प्रण में ठानें                
     ‘उचित वक्ता’ ने देशीय एकता पर जोर देते हुए आपसी मतभेद भुलाकर उनका अनुकरण करने को कहा एकता जिसके आभाव से यह अगण्य भारतवासी मुष्टि प्रमाण लोगों के पददलित हो रहें है”.पत्रकारिता न केवल सामाजिक और राजनीतिक बल्कि आर्थिक मुद्दों पर भी लोगों को जागरूक किया.इस क्षेत्र में भी पत्र-पत्रिका नवजागरण फैला रही थी. ‘मालवा अखबार’ का लिखना है कि भारतीयों को अक्ल नहीं है है की विलायत से कपड़ा बनकर आता है तथा हमारा रुपया विलायत जा रहा है
भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने ब्रिटिश सत्ता के आर्थिक शोषण को उजागर किया है जैसे हजार धारा होकर गंगा समुंद्र में मिलती है वैसी ही तुम्हारी लक्ष्मी हजार तरहों से इंग्लैंड जाती है. देश की दुर्दशा पर भारतेंदु व्यथित हों गए थे.
       अब जहँ देखहुँ तहँ दुखहि दुख दिखाई
        हा हा भारत दुर्दशा न देखी जाई   
                स्वदेशी के प्रति आग्रह करते हुए ‘उचित वक्ता’पत्र लिखता  है- देशी वस्तुयों का आदर देश की आवश्यकता है.यदि देशवासी विशेष कर बाबू लोग देशी वस्तुयों का समाकर करने लग जाये और विलायती कल की बनी सस्ती वस्तु की प्रतियोगिता में देशी हाथ की धनी वस्तुयों को बर्ताब में लेन कलग जाये तो अनायास देश की हीन दशा में परिवर्तन ही सकता है.
                   ‘परदेशी भारतवासी’ पत्र में अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने देशवासियोँ को जागरूक करते हुए कहा की-आओ समस्त देशवासियों हमलोग उपनिवेश और उसके पिट्टू इंग्लैंड की वस्तुयों का बहिष्कार करें”.
क्रांतिकारी आन्दोलनकारियों ने अपनी विचारधारा ‘युगांतर’ से प्रचारित किया, ‘इनकी हरेक पंक्ति से अंग्रेजों के प्रति विद्वेष टपकता है. हरेक शब्द से क्रांति के लिए उत्तेजना झलकती है. ‘ग़दर’ अपने आप में क्रांति का दूत था. क्रांतिकारिता की तेजस्वी प्रतीक की पत्र ‘ग़दर’ ने मातृभूमि के लिए उत्सर्ग का तराना गुंजित किया.
        जो पूछे कौन हो तुम,तो कह दो बागी है नाम अपना  
        जुल्म मिटाना हमारा पेशा,ग़दर करना है काम अपना
‘बंदेमातरम्’, ‘काल’ , ‘संध्या’ , ‘कर्मयोगी’ ने क्रन्तिकारी आंदोलन में महत्वपूर्ण वैचारिक जनमत तैयार किया.
1878 .में प्रकाशित ‘भारतमित्र’ ने राष्ट्रीय आंदोलन में बहुत योगदान दिया. इसमें बालमुकुन्द गुप्त ने कर्जन के अत्याचारों का पर्दाफाश किया था.
1913 . में कानपुर से प्रकाशित साप्ताहिक ‘प्रताप’ के गणेश शंकर विद्यार्थी को अपने लेखों के कारण सजा मिली तो, यह पत्र राष्ट्रीय आंदोलन का प्रमुख प्रचारक बन गया.1920 में श्री बाबूराव पराड़कर ने ‘आज’ निकाला जो वह राष्ट्रीय समाचारों और विचारों का प्रबल समर्थक था. दिल्ली में स्वामी श्रद्धानंद ने हिन्दी में वीर अर्जुन और उर्दू में तेज का प्रकाशन किया ये दोनों पत्र राष्ट्रीय आंदोलन के प्रबल पक्षधर रहे.
1881. में दयाल सिंह ने शीतलाकांत चटर्जी के संपादकत्व में ‘ट्रिब्यून’ प्रारम्भ किया. पंजाब के राष्ट्रवादी पत्रकारों में अंबा प्रसाद ने ‘हिन्दुस्थान’, ‘देश्भक्त’, ‘पेशवा’ में काम किया और राष्ट्रवादी विचारों को फ़ैलाने का काम किया.


भारत का कोई ऐसा प्रांत नहीं था जंहा राष्ट्रीयता का प्रचार करने वाले पत्रकार और पत्र न रहे हों .स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले समाचारपत्रों में ‘हिन्दी प्रदीप’, ‘बाम्बे क्रोनिकल’,’स्वराज’, ‘कौमी आवाज’ , ‘अभ्युदय’, ‘दैनिक हिन्दुस्तान’, ‘लीडर, इंडिपेंडेंट, ‘हिन्दू’ , ‘स्वदेशमित्रन’, ‘न्यू इंडिया’, सर्चलाईट, अल बिलाल, ‘नूतन सौराष्ट’  हमदर्द, हुंकार, मातृभूमि, कर्मवीर, तरुण राजस्थान, सैनिक, ‘आंध्र प्रभा’ , ‘जन्मभूमि’, ‘लोकमान्य’, ‘हितवाद’, ‘सकाल’, ‘समाज’, ‘प्रजातंत्र’,  ‘पंजाबी, ‘बंदेमातरम्’, ‘पीपुल’, ‘हरिजन’, ‘यंग इंडिया’,’नवजीवन’, ‘हरिजन सेवक’, ‘हरिजन बंधु’’, ‘फारबर्ड’, ‘नेशनल हेराल्ड’ अग्रणी रहे हैं.