रविवार, 10 जनवरी 2016

भारतीय राष्ट्रीय नवजागरण और हिन्दी पत्रकारिता


नवजागरण एक राजनीतिक तथ्य,ऐतिहासिक कालबोध, जीवनशैली में परिवर्तन तथा आधुनिक मानव सभ्यता के उदगम विकास की आदर्श मूल प्रतीक अवधारणा है. नवजागरण न आधुनिक युग का अरुणोदय मात्र है न अतीत की वापसी,न उच्च क्लासिकी ज्ञान का संरक्षण,न सामंती व्यवस्था के विरुद्ध राज व्यवस्था, न अभूतपूर्व अविष्कारों की खोज मात्र है नवजागरण का मूल प्रस्थान बिंदु है –मानव,मानव मंगल और मानव की स्वतन्त्र सत्ता का विकास.इसकी मूल चेतना सुशुप्त जनमानस में नवस्फूर्त चेतना,विवेक युक्त मुक्त चिंतन और राष्ट्र-भाव-ज्ञान सम्बेदन का स्फुरण जागरण .यह इतिहास है आत्मबोध,आत्मपरीक्षण और आत्मा चेतना की प्राप्ति का जिसने मानव जाति को प्रबुद्ध,स्वाधीन आधुनिक और कर्तव्यशील बनाया.
       भारतीय इतिहास के संदर्भ में 19वीं सदी का काल  जिसमेँ सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक पुनरुत्थान और नवविकास आया. इस काल में राष्ट्र और राष्ट्रीयता की चेतना का विकास हुआ. 19वीं शताब्दी की इस भारतीय नवजागरण को विकसित करने में हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका महत्वपूर्ण रही. समकालीन भारतीय परिदृश्य में पत्रकारिता एक मिशन को लेकर चल रही थी,जिसका उद्देश्य था-सामाजिक-आर्थिक-धार्मिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में फ़ैली कुरीतियों के प्रति भारतीय जनमानस को जागरूक करना.समकालीन विचारकों ने पत्रकारिता के माध्यम से लोगों को जागरूक किया. हिन्दी पत्रकारिता ने राष्ट्रीय नवजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
     इसी परिदृश्य में जब 19 वीं शताब्दी में राष्ट्रीय नवजागरण और सुसंगठित जनमत के अंकुरण का काल था,पत्रकारिता का विकास हुआ. इस नई प्रविधि ने भारतीयों में चेतना फ़ैलाने का काम किया. यह न केवल सामाजिक बल्कि समाज के विभिन्न आयामों में जागरूकता फ़ैलाने का काम किया. राजा राम मोहन राय का मानना था कि—मेरा उद्देश्य मात्र इतना ही है की जनता के सामने ऐसे बौद्धिक निबंध उपस्थित करूं जो उनके अनुभव को बढायें और सामाजिक प्रगति में सहायक सिद्ध हो इस मिशन को  लेकर चलने वाली पत्रकारिता का राष्ट्रीय नवजागरण के विकास में बड़ी भूमिका रही.
अरबिंद घोष का मानना था की- राजनीतिक आजादी किसी राष्ट्र की जीवन वायु है इसको पाने के लिए पत्रकारिता ने जनमानस में विचारों को उद्धेलित किया.पत्रकारिता द्वारा यह बताया जाता था- मुल्क हिंदुस्तान के रहनेवाले हर कौम और मजहब के लोगों से मेरी इल्तजा है की इस नामुराद फिरंगी कौम से मुल्क की हुकूमत को छीनकर मुल्क के काबिल और समझदार लोगों के हाथ में मुल्क सौप दे
  यह चेतना न केवल राजनीतिक क्षेत्रों बल्कि आर्थिक क्षेत्रों में भी दिखाई देता है जो पत्रकारिता के माध्यम से हो रहा था.  
              अंगरेजी अरु फारसी अरबी संस्कृत ढेर

              खुले खजाने तिनन्ही क्यों लुटत लाबहू देर.     नवजागरण हेतु आत्मगौरव की बात पत्रकारिता में भी हो रही थी.
                     एक देव,  एक देश एक भाषा

                      एक जाति,एक जीव एक आशा हिन्दी पत्रकारिता में स्वराज हेतु संघर्ष करने की बात भी की जा रही थी.
        मुझको तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक

         मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाये वीर अनेक

नवजागरण मूलतः यूरोपीय इतिहास से ली गई अवधारणा है,जिसका प्रयोग और विकास 19 वीं सदी के भारत में इसके ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत और चिंतन के अनुरूप हुआ है.वंदे मातरम पत्र के अनुसार—राष्ट्रीय नवजागरण वस्तुतः पुनर्जन्म है और पुनर्जन्म,न केवल बुद्धि से न पूर्ण आर्थिक समृद्धि से,न नीति या सिद्धांत से न प्रशासनिक परिवर्तन से होता है.वह तो नया ह्रदय प्राप्त करने,त्याग की अग्नि में अपना सर्वस्व होम करने और माँ के गर्व में पुनः जन्म लेने से होता है.
                               भारतीय विचारकों ने 19वीं शताब्दी की सामाजिक-सांस्कृतिक रूपांतरण,पुनरुत्थान तथा नवविकास को भारतीय नवजागरण के नाम से जाना जाता है. शिवदान सिंह चौहान ने राष्ट्रीय नवजागरण को इसी अर्थो में रूपायित किया है----राष्ट्रीय जागरण से तात्पर्य अपने राष्ट्रीय अस्तित्व एंव एकता की ब्रिटिश सत्ता विरोधी राजनीतिक चेतना या भावना का उत्पन हो जाना मात्र नहीं,इससे केवल इतना समझ लेना इसके अर्थ को अत्यंत संकुचित कर देना है.हमारे राष्ट्रीय जागरण से मिलती-जुलती किन्तु भिन्न ऐतिहासिक परिस्तिथियों में एक धारा यूरोप के देशों में पहले प्रवाहित हो चुकी है जिसे इतिहास में सांस्कृतिक पुनर्जागरण कहते है.
         ब्रिटिश सत्ता के अधीन भारतीय इतिहास में 19 वीं शताब्दी का नवजागरण काल राष्ट्रीयता के भावों का प्रतीक भी था.देवराज पथिक कहते है---वस्तुतः जब कभी भी समाज अथवा राष्ट्र की परंपरागत मूल धारणा निर्बल पड़ जाती है और किसी नई विचारधारा को कोई समाज अथवा राष्ट्र ग्रहण करता है और वह विचारधारा किसी निश्चित लक्ष्य अथवा ध्येय के आलोक में आगे बढ़ती है तो राष्ट्रीयता की भावना जागृत होती है.इसी जागृति को राष्ट्रीय नवजागरण के नाम से संबोधित किया जाता है. वस्तुतः भारतीय राष्ट्रीय नवजागरण यूरोपीय सभ्यता और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के राजनीतिक प्रभुत्व के संघर्ष-प्रतिसंघर्ष से उत्पन जन आंदोलन था.
                              19वीं शताब्दी के इसी परिदृश्य में भारतीय पत्रकारिता का विकास प्रारंभ हुआ. यह आधुनिक काल की महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है जिससे जागरूकता का व्यापक प्रसार सुलभ होता है. पत्रकारिता ने उस सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना को वैज्ञानिक आलोक में मानवीय धरातल के बिभिन्न स्तरों और आयामों पर प्रस्तुत किया.इससे भारतीय पत्रकारिता ने भारतीय जनजागरण और कालांतर में राष्ट्रीयता के विकास को प्रोत्साहित किया .पत्रकारिता, नवजागरण और राष्ट्रीयता का विकास एक दूसरे हेतु सहायक रही. यदि भारतीय पत्रकारिता को राष्ट्रीयता ने विकसित किया तो पत्रकारिता ने भी राष्ट्रीयता के विकास में भूमिका निभाई.इस प्रकार राष्ट्रीयता के विकास के साथ-साथ पत्रकारिता का अपेक्षित विकास हुआ.
पत्रकारिता के इसी दौर में केशवचंद्र सेन ने सर्वप्रथम हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया.इन्होंने कहा की-इस समय भारत में जितनी भाषाएँ प्रचलित है.इस हिन्दी भाषा को यदि भारतवर्ष की एकमात्र भाषा बनाया जाये तो यह कार्य शीघ्र ही समाप्त हो सकता है इस परिवर्तन में पत्रकारिता का विकास हुआ.
19वीं शताब्दी की हिन्दी पत्रकारिता ने न केवल सामाजिक-धार्मिक कुरीतियों हेतू जनमानस  में जागरूकता फैलाया बल्कि राजनीतिक क्षेत्रों में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध मुक्ति की मानसिकता को तैयार करने में योगदान दिया.हिन्दी पत्रकारिता ने राष्ट्रीयता को आकार देने का काम भी किया. यह राष्ट्रीयता भारत के लिए नवीन विश्वास था इससे पहले इस देश में यह बात अपरचित थी. भारत में राष्ट्र और राष्ट्रीयता की भावना के प्रति चेतस और एकीकरण का कम 19वीं शताब्दी में हिन्दी पत्रकारिता द्वारा किया गया.यही प्रवृति राष्ट्रीय नवजागरण कहलाती है.
'पत्रकारिता राष्ट्र की आत्मा और जीवनी शक्ति को पुनर्जीवित करने का सशक्त माध्यम है.वह राष्ट्रीय जीवन की समस्त गतिविधियों अनुभूति का दर्पण होती है.रेनेंसा काल की हिन्दी पत्रकारिता का तत्कालिन राजनीतिक,सामाजिक,धार्मिक और सांस्कृतिक नवजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका रही.19वीं शताब्दी के क्रांतिकारी परिवर्तनों और नवजागरण ने भारतीय जनमानस को जागरूक किया.इतिहासकार विपन चन्द्र का मानना था कि 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में शिक्षित भारतीयों पर पत्रकारिता के प्रभाव को स्वीकार किया है क्योंकि इसके माध्यम से जनता का राजनीतिकरण और राजनीतिक-आर्थिक चेतना का प्रसार किया गया था."
समकालीन हिन्दी पत्रकारिता के माध्यम से राजनैतिक-आर्थिक गतिविधियों की पारदर्शक सच्चाई उजागर हो उठती है.इस काल की पत्रिकायों में सामयिक सामाजिक-धार्मिक रूढियों के प्रति विद्रोह की चेतना को देखा जा सकता है.इसमें ब्रिटिश सत्ता से मुक्ति हेतू संघर्षकारिता की भावना का संचार भी देखने को मिलता है. हिन्दी पत्रकारिता ने अनेक गंभीर राजनीतिक प्रश्नों और विषम आर्थिक समस्याओं पर निरंतर चिंतन विश्लेषण चर्चा और वाद-विवाद करके राष्ट्रीय जीवन में एक नया मोड़ और राजनीतिक झंझावत ला दिया.
‘पयामे आजादी’ पत्र में राजनीतिक संघर्षकारिता की धारा अत्यंत तीव्र है.
                आया फिरंगी दूर से ऐसा मंतर मारा

                लूटा दोनों हाथों हे प्यारा वतन हमारा इसी पत्र में प्रकाशित कविताओं से राजनीतिक चेतना का विकास व्यापक रूप से हुआ.
              हम है इसके मालिक,हिंदुस्तान हमारा

              पाक वतन है कौम का जन्नत से भी प्यारा  
                                       1907 से इलाहबाद से प्रकाशित ‘स्वराज’ नमक साप्ताहिक पत्र में राष्ट्रीय पराधीनता के आवासन और स्वाधीनता के आगमन की कामना प्रकट करते हुए संपादक  के विज्ञापन इस प्रकार प्रकाशित की गई है.
                        चाहिए स्वराज के लिए एक संपादक.वेतन दो सूखी रोटियाँ.एक ग्लास ठंडा पानी और हर सम्पादकीय के लिए दस साल की जेल
                     स्वतंत्रता किसी राष्ट्र की प्राणवायु होती है.इसके लिए हिन्दी पत्रकारिता ने जनमानस में चेतना का संचार किया.स्वराज की स्थापना हेतू ‘नृसिंह’ ने लिखा—स्वराज की आवश्यकता भारतवासियों को इसलिए है की विदेशी सरकार उनके आभाव को समझने में असमर्थ है.स्वराज के बिना भारत की गति नहीं है.
  राष्ट्रप्रेम की भावना को प्रसारित करने में दशरथ प्रसाद की ‘स्वदेशी’ ने भी योगदान दिया.
                   जो भरा नहीं भावों से बहती जिसमे रसधार नहीं

                   वह ह्रदय नहीं,पत्थर है,जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं 

  पराधीनता के काल में स्वाधीनता हेतु भारतीय जनमानस का आह्वान किया.
 
  ऐ मादरे हिन्द न हो गमगीं दिन अच्छे आने वाले हैं

    आजादी का पैगाम तुम्हेँ हम जल्द सुनाने वाले है
              क्रांतिकारिता की तेजस्वी प्रतीक की पत्र ‘ग़दर’ ने मातृभूमि के लिए उत्सर्ग का तराना गुंजित किया.
        जो पूछे कौन हो तुम,तो कह दो बागी है नाम अपना  

        जुल्म मिटाना हमारा पेशा,ग़दर करना है काम अपना
                     राजनीतिक स्तर पर जागरूकता फैलाने हेतु क्रांतिकारियों ने भी अपनी वैचारिक अवधारणा को जनमानस के सामने हिन्दी पत्रकारिता के माध्यम से प्रस्तुत किया. ‘विजय’ पत्र का कहना था कि-         
                
        लेकर पूर्ण स्वराज स्वत्व अपना पहचानें     

         आजादी या मौत यही प्रण में ठानें                
                ब्रिटिश शासक भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार करते थे. ‘भारत जीवन’ ने लिखा क्या देशी मनुष्य नहीं होते?क्या उनके हाथ-पाँव और ह्रदय नहीं है?क्या देशीयो को मरने से चोट नहीं लगती?14
     जागरणकालीन पत्रकारिता ने फूटपरस्त भावनायों और परस्पर सद्भाव के आभाव को ही भारतीय परतंत्रता और देशोन्नति न होने का मूल कारण बताया अमीर और रईसों की ओर अदृष्टी और आपस का विरोध ही देशोन्नति न होने का कारण है15
     ‘उचित वक्ता’ ने देशीय एकता पर जीर देते हुए आपसी मतभेद भुलाकर उनका अनुकरण करने को कहा एकता जिसके आभाव से यह अगण्य भारतवासी मुष्टि प्रमाण लोगों के पददलित हो रहें है
      नवजागरणकालीन पत्रकारिता न केवल राजनीतिक क्षेत्रों में जाग्रति फैला रही थी बल्कि सामाजिक क्षेत्रों में भी हिन्दी पत्र-पत्रिका ने इसको फैलाया.स्त्री शिक्षा पर बल देकर सामाजिक सुधारों पर बल दिया.आगरा से प्रकाशित ‘बुद्धि प्रकाश’ ने लिखा स्त्रियों में संतोष,नम्रता और प्रीत ये सब गुण कर्त्ता ने उत्पन्न किये है,केवल विधा की ही न्यूनता है जो यह भी होती तो स्त्रियां अपने सरे ऋण से चूक सकती है
कहने को तो ‘कवि बचन सुधा’साहित्यिक पत्रिका थी,परन्तु इसने जो दिशा निर्देश दिया उसके परिणामस्वरूप हिन्दी जगत में ऐसी पत्रकारिता का प्रचलन हुआ जो किसी सामाजिक सुधार,जाति मत विशेष के समर्थन ने नहीं चल रही थी.बल्कि जिसका उद्देश्य समूचे पाठकों को चाहे वे किसी भी क्षेत्र,धर्म या जाति के हों देश की राजनीतिक,आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से परिचित करना था.
महिलाओं पर केंद्रित पत्रिका ने भी महिलाओं में जागरूकता फ़ैलाने का कम किया.सुगृहिणी पत्रिका की संपादिका हेमंत कुमारी चौधरी ने इस पत्रिका का उद्देश्य बताते हुए लिखा की हे बहनों,द्वार खोल दो,तुम्हारे यंहा कौन आई है.तुम्हारे दुखो को देखकर तुम्हें अज्ञानता और पराधीनता में बध्द देखकर तुम्हारी यह बहिन तुम्हारे द्वारे पर आई है
इस काल की पत्र-पत्रिकायों ने बाल विवाह की सामाजिक विसंगति पर भरपूर प्रहार किया.हिन्दी पत्र-पत्रिकायों ने बाल विवाह से होने वाली राष्ट्रीय हानि तथा सामाजिक पतन को गहराई से विवेचित किया है.सामाजिक रुढियों पर प्रहार किया है.बाल विवाह,शिशु हत्या.विधवा विवाह अस्पृश्यता जैसे विषयों पर लिखा.
तत्कालिक हिन्दी पत्रकारिता ने समाज की हर दुखती राग को छेड़ा जिसे पत्रकारों ने जिया और भोग था.उसने सामाजिक दायित्व वाहन करने में पूरी इमानदारी और वैज्ञानिक चिंतन का सहारा लिया था.तत्कालीन पत्रकारिता की जीवन्तता और प्रासंगिकता उनकी गहरी चिंतन का परिश्रम था. नवजागरणकालीन हिन्दी पत्रकारिता न केवल सामाजिक और राजनीतिक बल्कि आर्थिक मुद्दों पर भी लोगों को जागरूक किया.इस क्षेत्र में भी पत्र-पत्रिका नवजागरण फैला रही थी. ‘मालवा अखबार’ का लिखना है कि भारतीयों को अक्ल नहीं है है की विलायत से कपड़ा बनकर आता है तथा हमारा रुपया विलायत जा रहा है
भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने ब्रिटिश सत्ता के आर्थिक शोषण को उजागर किया है जैसे हजार धारा होकर गंगा समुंद्र में मिलती है वैसी ही तुम्हारी लक्ष्मी हजार तरहों से इंग्लैंड जाती है. देश की दुर्दशा पर भारतेंदु व्यथित हों गए थे.
       अब जहँ देखहुँ तहँ दुखहि दुख दिखाई

        हा हा भारत दुर्दशा न देखी जाई    
                स्वदेशी के प्रति आग्रह करते हुए ‘उचित वक्ता’पत्र लिखता  है. देशी वस्तुयों का आदर देश की आवश्यकता है.यदि देशवासी विशेष कर बाबू लोग देशी वस्तुयों का समाकर करने लग जाये और विलायती कल की बनी सस्ती वस्तु की प्रतियोगिता में देशी हाथ की धनी वस्तुयों को बर्ताब में लेन कलग जाये तो अनायास देश की हीन दशा में परिवर्तन ही सकता है.
‘परदेशी भारतवासी’ पत्र में अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने देशवासियोँ को जागरूक करते हुए कहा की-आओ समस्त देशवासियों हमलोग उपनिवेश और उसके पिट्टू इंग्लैंड की वस्तुयों का बहिष्कार करे
हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं ने धर्म और संस्कृति को व्यापक उद्धात अर्थ में ग्रहण किया था.उसे किसी संप्रदाय विशेष से संबद्ध न होकर मानव धर्म और राष्ट्र धर्म के रूप में निरुपित किया गया है. ‘सारसुरानिधि’ में लिखा है की प्रकृति के उत्कर्ष साधन का नाम धर्म है.अतएव दोनों प्रकारके उत्कर्ष करना ही मनुष्य का उचित कर्त्तव्य है


हिन्दी पत्रकारिता राष्ट्रीय नवजागरण के लिए वैचारिक क्रांति की वाहिका रही,वंही पत्रकारिता को आधुनिक स्वरुप प्रदान करने का श्रेय नवजागरणकाल को दिया जा सकता है.नवजागरण की प्रवृति ने हिन्दी पत्रकारिता में प्रगतिशीलता,यथार्थपरक दृष्टिकोण,राष्ट्रीय बोध का संचार किया.जातीय चिंतन को सबल रूप से पेश करके नवजागरण के माध्यम से पत्रकारिता में वैज्ञानिक तर्कशीलता और बौद्धिकता का समावेश किया.इस प्रकार कहा जा सकता है की इस काल की पत्रकारिता ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जागरूकता का संचार किया