बुधवार, 11 मार्च 2015

ग्रासरूट मीडिया से सशक्त होती महिलायें



सशक्तिकरण एक बहुआयामी धारणा है और इसका संबंध लोगों की सामाजिक उपलब्धियों,आर्थिक और राजनीतिक सहभागिता से जुड़ा होता है.इसके साथ ही सशक्तिकरण एक सतत प्रक्रिया भी है और इसकी कोई अंतिम सीमा भी नहीं.कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण रूप से सशक्त नहीं हो सकता है.जटिल और गतिशील प्रकृतिके कारण किसी भी वैकासिक अध्धयन में सशक्तिकरण को परिभाषित करना और उसको मापना एक चुनौती है.महिलायों के मामले में तो यह और भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि महिलाओं के साथ दीर्घकाल से भेदभाव होता रहा है.
           महिला सशक्तिकरण की परिभाषायें संसाधनों पर नियंत्रण या शक्ति हासिल करने(भौतिक और वित्तीय)और महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता निर्धारित करने वाले निर्णय लेने की क्षमताओं पर बल देती है.महिला सशक्तिकरण की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है.विभिन्न अध्ध्यनो में लक्ष्यों और क्षेत्र के आधार पर महिला सशक्तिकरण को परिभाषित किया गया है”   सामान्य अर्थ में कहा जा सकता है की नीति निर्णय या निर्माण की क्षमता से युक्त होना  ही सशक्तिकरण है.इसके आभाव का न केवल महिलाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि इसका असर पूरे परिवार और समाज पर भी पड़ता है. सशक्तिकरण एक सतत प्रक्रिया भी है.महिलायों के मामले में तो यह और भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि महिलाओं के साथ दीर्घकाल से भेदभाव होता रहा है. इस भेदभाव को कम करने के लिए समावेशी विकास की अवश्यकता के उद्देश्यों को प्राप्त  करने हेतु सरकार ने लैंगिक बजट का प्रावधान किया है ताकि असमानता को दूर किया जा सके.क्योंकि नारी अस्तित्व से ही मानवता का विश्वास जीवित है.
  आंद्रे बिताई ने अपने दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए लिखा है कि सशक्तिकरण सामाजिक रूपांतरण से संबंधितहै,जिसमें आमूलचूल परिवर्तन की व्याख्या सामान्य आम लोगों के संदर्भ में की गई है.यह राजनीतिज्ञों,विशेषज्ञों और सामाजिक-सांस्कृतिक रूप में विकासित व्यक्तियों की अपेक्षा आम लोगों के पुनरुत्थान के विषय में है 
 इस अर्थ में सशक्तिकरण की अवधारणा एक लक्ष्य की प्राप्ति का साधन भी है एवं अपने आप में साध्य भी,क्योंकि भिन्न-भिन्न परिस्तिथियों में इसका भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है.इसमें भिन्नता और तरलता भी है
वास्तव में सशक्तिकरण के विचार को मानव अधिकारों से लिया गया है.इस अर्थ में मानव अधिकारों की अवधारणा का एक विस्तृत अर्थ है.इसके अंतर्गत मूलभूत आवश्यकताओं,आर्थिक सुरक्षा,क्षमताओं के विकास,निपुणताओं का निर्माण और सम्माननीय जीवनयापन आदि को सम्मिलित किया गया है.महिला सशक्तिकरण का अभिप्राय महिलायों के सामाजिक पुनरूत्थान से संबधित है.इस प्रकार सशक्तिकरण का विचार राजनैतिक,आर्थिक,सामाजिक और सांस्कृतिक है.
 महिलायों के सशक्तिकरण का तात्पर्य उन्हें अधिक शक्ति या सत्ता दिया जाना है अर्थात महिला को अधिक सुविधापूर्वक कार्य देने के लिए उनमें चेतना और उन क्षमतायों का विकास किया जाना ताकि जीवन के हर क्षेत्र में अपनी सहभागिता निभा सके.
वर्तमान परिदृश्यों में मीडिया एक प्रभावशाली साधन और संसाधन बनकर उभरा है.इसके माध्यम से महिलाएं सशक्त हो रही है,क्योंकि मीडिया सूचना का एक माध्यम है,और आज के दौर में सूचना एक शक्ति है. जनपक्षीय सरोकारों से लैस होकर खबर लहरिया और नवउदयम ने साबित कर दिया है की ग्रामीण महिलाओं को सशक्त करने में इसकी क्या भूमिका हो सकती है.सामाजिक परिवर्तन लाने की दिशा में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है परन्तु आज की मुख्यधारा का मीडिया नई पूंजी और राजसत्ता का दलाल बन गई है.विकास के क्षेत्र में सूचना का सबसे अधिक महत्त्व होता है,बिना सूचना के किसी भी क्षेत्र में विकास संभव नहीं हो सकता.विकास योजना का मुख्य उद्देश्य मानव विकास तथा लोगों द्वारा जीवन यापन का उच्चतर स्तर हासिल करना ताकि समावेशी विकास हो सके.इसके लिए गरीबों,हाशिये पर रह रहें लोगों को विकास के लाभों और अवसरों के अधिक समान वितरण और बेहतर रहन-सहन के वातावरण व सशक्तिकरण की जरुरत है.
 महिला विकास एक संवेदनशील विषय है जिसे पूरी गंभीरता के साथ देखना होगा.इस गंभीर दायित्व को मीडिया को भी स्वीकार करना होगा.महिला सशक्तिकरण के नाम पर जितनी भी योजनाएं बनी उसका लाभ इस देश की औसत और सामान्य महिला को नहीं मिला है.इसलिए मीडिया की भूमिका बड़ी है क्योंकि इसकी पहुँच अधिकतम है.

खबर लहरिया और महिला सशक्तिकरण
‘खबर लहरिया’हिन्दी मिश्रित बुन्देली बोली में प्रकशित हिने वाला एकमात्र भारतीय भाषायी पाक्षिक समाचार पत्र है जिसे 8 ग्रामीण गरीब दलित महिलायों द्वारा चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)से प्रकाशित किया जाता है इसकी सहायता निरंतर ट्रस्ट(नई दिल्ली) द्वारा की जाती है.2002में ग्रामीण महिलायों के समूह द्वारा यह प्रारंभ किया गया यह पत्र चित्रकूट और बांदा के 300 से अधिक गाँवों में पढ़ी और सुनी जाती है.खबर लहरिया स्थानीय भाषा में स्थानीय आवश्यकताओं और सवेदनाओ से युक्त ग्रामीण पत्रकारिता की एक नई पहल है जो हाशिये पर खड़ी दलित और पिछड़ी वर्ग की महिलायों द्वारा संचालित की जाती है.
ग्रामीण पत्रकारिता में खबर लहरिया जनपक्षधरता का पर्याय बन चुका है.आज की मुख्यधारा की मीडिया के सामने जंहा लगातार बढते मुनाफे और आर्थिक वृद्धि का दबाव है दुसरी ओर न्याय,विकास और लोकतांत्रिक आग्रह के लक्ष्य के साथ वैकल्पिक मीडिया के रूप में खबर लहरिया पहचान बनाने में सफल रहा है.जंहा मुख्यधारा की मीडिया कुछ खास लोगों के लिए अथाह लाभ हेतु काम करती है वन्ही सभी के न्याय को लेकर खबर लहरिया ग्रामीण क्षेत्रों में वैकल्पिक मीडिया का सार्थक निर्वाह कर रही है.लोकतंत्र,विकास और न्याय के पक्ष में खबर लहरिया की बढती भूमिका ने ग्रामीण पत्रकारिता को व्यापक जनस्वीकृति दिलवाई.
खबर लहरिया को प्रारंभ करने के विचार की बात पर निरंतर ट्रस्ट शालिनी जोशी का कहना था कि जब निरंतर में यह बात स्थापित हो चुकी थी कि एक अखबार की जरुरत है,और यह संभव है कि यहीं की महिलाओं को इस अखबार को निकालने की प्रक्रिया से जोड़ा जा सकता है.कुछ औरतें साक्षरता की ओर बढ़ी थी,हमको लगा कि यह भी उस बात को सशक्त करेगा की उनकी साक्षरता को कैसे कायम रखा जाए.तो यह हमें लगा कि यह एक तरीका है जिसमें हम औरतों के साक्षरता को आगे विकास करने के लिए मंच दे सकते है और एक ऐसा मंच जो निरंतर चलता रहें.
खबर लहरिया में प्रकाशित होने वाली सामग्री को तैयार करने में ग्रामीण महिलायों की भूमिका होती है.क्षेत्रीय स्तर पर जो सामग्री तैयार होती थी वह इन गरीब ग्रामीण औरतों के लिए होती थी पर इनको कोई और लोग तैयार करते थे,शहर में बैठे लोग यह तय करते थे कि यंहा के लोग क्या पढ़ना चाहते है,महिलायों के लिए कौन सी सामग्री  सही सामग्री है.इस स्थिति में खबर लहरिया के माध्यम से यह तय हुआ की उनकी बीच की सामग्री को उनकी बीच के लोगों द्वारा यह तय किया जायेगा की कौन सी सामग्री ज्यादा महत्वपूर्ण है.
इस अखबार में काम करने वाली महिलायों के लिए दोहरी चुनौती रहती है.एक तरफ उनको घरेलू दायित्व का निर्वाह करना होता है दूसरी ओर ‘खबर लहरिया’ के प्रति प्रतिबद्धता भी होती है.फिर भी महिलायें पत्रकारिता के तरंगों को विकास से जोड़ रही है.मुख्यधारा की मीडिया के स्थानीय संस्करणों में भी ग्रासरूट की खबरें नहीं आ पति है जबी स्थानीय मुद्दों को ‘खबर लहरिया’ महत्वपूर्ण स्थान देता है.
खबर लहरिया ने मानिकपुर गाँव से 8 किलोमीटर दूर सुखरामपुर गाँव में जिसकी जनसंख्या 600 थी में टी.बी. की बीमारी की रिपोर्टिंग सबसे पहले करके प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया था.इसके बाद स्वास्थ्य प्रशासन ने समुचित इलाज की व्यवस्था कर कई लोंगों को बीमारी से मुक्त किया.
खबर लहरिया ने भरतकूप चित्रकूट में अवैध खनन की जानकारी देते हुए लिखा एक साल पहले तक यह भरतकूप का पहाड हरा-भरा हुआ करता था,यंहा के पत्थर की खुदाई ‘हिंदुस्तान 19सीमेंट कंपनी’ ने अगस्त 2004 से शुरू करवाया.इस खुदाई से यह पहाड़ मिटटी का ढेर बन कर रह जाता,यंहा तक की यंहा के किसानों के खेत बर्बाद हो रहें थे. इस गंभीर मामले की खबर सबसे पहले इसी अखबार में छपी और इसका असर हुआ.                                

नव उदयम और महिला सशक्तिकरण
चित्तूर(आन्ध्रप्रदेश)की 6 गरीब ग्रामीण महिलायों ने महिलायों से संबद्ध मुद्दे को एक आवाज देने के लिए तेलगू भाषा में न्यूजलेटर की शुरूआत की.इनका मानना था कि इनको सूचना से सूचित करके सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है.आज नवोदयम 750प्रति से 30000प्रति तक पहुँच गया है.वर्तमान में इसके पाठकों की संख्या 2 लाख है.इस पत्रिका में समाचार संकलन से लेकर ले आउट डिजायन परिकल्पना का काम महिलायों द्वारा किया जाता है.इस मासिक पत्रिका में घरेलू मुद्दों तथा विशेष विषयों पर आधारित मुद्दे भी होते हैं.इस पत्रिका से जुड़ी इन अर्धशिक्षित महिलायों को समाचार संकलन और समाचार संपादन,यंहा तक कि वीडियो फिल्म बनाने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया है.यह महत्वपूर्ण है कि हाशिये की आशिक्षित/अर्धशिक्षित महिलायों ने आंध्रप्रदेश में इस मूक क्रांति को प्रारंभ किया है.
नवउदयम, नव और उदयम से बना है,नव का अर्थ नया और उदयम का अर्थ उदय से है.महिलायों के सपनों को नई ऊँचाई देती नवउदयम नाम की सामुदायिक पत्रिका जो महिलायों के लिए,महिलायों के द्वारा तथा महिलायों की संकल्पना को पूरा करती है.इस पत्रिका का संपादन,प्रकाशन,वितरण और विपणन महिलायों के द्वारा ही की जाती है,यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का बेहतर उदाहरण है. इस पत्रिका से संबद्ध कोई महिला संभ्रांत तबके या विश्वविद्यालाय की उपाधिधारी नहीं है.इनमें से किसी ने भी पत्रकारिता की डिग्री नहीं ली है.सभी ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं,इनमे से किसी को अंग्रेजी नहीं लिखनी आती नहीं पढनी,परन्तु इस पत्रिका का संचालन ही नहीं बल्कि विकास के नए आयाम को स्पर्श कर रही है.    
यह सामुदायिक पत्रिका सरकार और ग्रामीण महिलायों के बीच एक मजबूत कड़ी के रूप में उभरकर सामने आई है.इसके माध्यम से सरकार अपनी सूचनायों के प्रवाह को ग्रामीण महिलायों की ओर प्रेषित करती है ताकि महिलाओं को सरकारी योजनायों का लाभ मिल सके.जिससे महिलायें अपना विकास कर सके.दूसरी ओर इसके माध्यम से सरकार महिलायों की समस्या से अवगत हो सके.14यह नवउदयम परियोजना विश्व बैंक गरीबी निवारण कार्यक्रम का एक भाग है.इस न्यूजलेटर का पहला अंक सूचना द्वारा सशक्तिकरण की बात करती थी, जो 15अगस्त 2000 को प्रकाशित हुई थी.इनका मुख्य उद्देश्य गावं के लिए समाचारपत्र निकालना था.इसके लिए चित्तूर जिले के 6 ग्रामीण गरीब दलित महिलाएं तिरुपति में एकत्र हुई. ‘सशक्तिकरण के लिए सूचना’ को आधार बनाकरनवउदयम’ एक न्यूजलेटर के रूप में प्रारंभ हुई.इसके चार उद्देश्य थे----
1.ग्रामीण गरीब महिलाओं को उनकी आवाज देना
2.ग्रामीण महिलायों द्वारा समाचार संकलन करना
3.सूचनायों तक गरीब ग्रामीण महिलायों की पहुँच
4.पत्रकारिता को विकास के लिए साधन बनाना.
 न्यूजलेटर से प्रारंभ होकर यह पत्रिका 8 पृष्ट की पाक्षिक पत्रिका के रूप में परिवर्तित हो गई.प्रारंभ में यह 750प्रति प्रकाशित होती थी,अब यह 24 पृष्टों की मासिक पत्रिका हो गई जिसकी 30हजार प्रतियाँ प्रकाशित होती है.वर्त्तमान में इसके पाठकों की संख्या 2 लाख तक पहुँच गई है.इसके रिपोर्टर जो ग्रामीण क्षेत्र की महिलायें हैं जिन्होंने पत्रकारिता का सारा कार्य सीखा.इसमे समाचार संकलन,लेखन,संपादन और लेआउट डिजायन शामिल है.6 महिलायों द्वारा प्रारंभ किया गया इस पत्रिका में आज 10 स्टाप रिपोर्टर और 20 सहयोगी बन गए हैं.सामुदायिक समन्वयक और संघमित्र(इंदिरा क्रांति पाठ्य कार्यक्रम की ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता)के माध्यम से इस पत्रिका की सदस्यता के लिए पाठकों को प्रोत्साहित किया जाता है.ये पत्रिका के सुचारू रूप से संचालन के लिए विज्ञापन भी लाती है.पत्रिका के तकनीकी और वित्तीय मुद्दों से संबद्ध निर्णय कोर समूह लेती है.नवोदयम योजना आयोग की 9 सदस्यों में  6 पत्रिका की संस्थापक सदस्य तथा 3 जिला समाख्या की होती है.इसकी अध्यक्षता संपादिका होती है.
 यह पत्रिका नशाबंदी के मुद्दे पर,ग्रामीण क्षेत्रों में ऋणग्रस्तता के समस्या पर यह पत्रिका अशिक्षित महिलायों में बड़े पैमाने पर जागरूकता फैला रही है.जनवरी 2010 में इस पत्रिका ने शिवरात्रि के अवसर पर हिने वाले बाल-विवाह को मुद्दा बनाया था.इस पत्रिका ने बाल विवाह की बुरे के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया.यह यंहा की पुरानी परम्परा है कि शिवरात्रि के दिन बाल-विवाह होने से दीर्घायु होता है क्योंकि इस रात्रि को ‘देवेदु पिल्ली’(भगवान का विवाह)होता है.इस अवसर पर प्रतिवर्ष 2000बाल-विवाह होता था.इस परम्परा के विरुद्ध पत्रिका ने बाल-विवाह की बुराइयों को उजागर करके चेतना फ़ैलाने का काम किया."
नवोदयम ने 7 महिलाओं को 10माह का वीडियो पत्रकारिता का कोर्स करवाया.इन महिलायों ने अब तक 100 से ज्यादा वृतचित्र का निर्माण किया.यंहा तक कि इन महिलाओं द्वारा निर्मित वीडियो का उपयोग बड़े टेलिविजन नेटवर्क द्वारा किया जाता है,जो इनके राजस्व का स्रोत है.इनके द्वारा बाल-विवाह पर बनी वृतचित्र का प्रदर्शन गाँवों में किया जाता है.इसके माध्यम से जागरूकता फैलाया जाता है.नवउदयम की महिलाएं न केवल पत्रकरिता के माध्यम से बल्कि ग्रामीण स्थानीय जनता से उनकी स्वास्थ्य,घरेलू हिंसा से संबद्ध समस्याओं पर चर्चा करती है.इसके साथ ही लड़कियों को स्कूल जाने तथा बाल-विवाह न करने पर बल देती है.
हाशिये की महिलायों द्वारा प्रारंभ की गई यह पत्रिका आज सार्थक पत्रकरिय हस्तक्षेप कर रही है जो मुख्यधारा की मीडिया नहीं कर पा रही है.