बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

सिनेमा की महिला : पतिता के ना से विश्व सुंदरी के हां तक



सिनेमा की महिला के इस खंड में यह बताने का प्रयास किया जाएगा की समय के प्रवाह में सिनेमा में काम करने की लक्ष्मण रेखा जो पतिता यानि वेश्यायों ने रखी थी उसको पार करने का काम बाद में न केवल भारत सुंदरी ने किया वरन विश्व सुन्दरियों के साथ-साथ अब यह विश्व के तमाम सुंदरियों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है. सिनेमा के प्रारंभ में ख़ास कर महिला कलाकारों की तो घोर आभाव थी.समकालीन परिदृश्यों में महिलाओं  का  सिनेमा में काम करना तो दूर मंच पर   किसी भी रूप में कलामंच पर आना असभ्य आचरण का लक्षण माना जाता था.महिलायों के लिए सामाजिक तौर पर एक लक्ष्मण रेखा बनी हुई थी कि कोई भी महिला सिनेमा में काम नहीं करेगी.उस दौर में महिला का सिनेमा में काम करना बेहद लज्जाजनक माना जाता था.पहली फिल्म की नायिका के लिए बहुत प्रयास के बाद भी कोई महिला तैयार नहीं हो पाई.जब निर्देशक ने यह प्रस्ताव वेश्यायों के पास ले गए तो उन्होंने विनम्रता पूर्वक कहा की “यह जरुर है की हम पतिता अवश्य है,परन्तु इतने भी पतित नहीं हैं की सिनेमा में काम करें”तब के समाज की यह लक्ष्मण रेखा थी की कोई भी महिला सिनेमा में जाना नहीं चाहती थी परन्तु दौर बदला और सिनेमा की महिलायों ने इस लक्ष्मण रेखा को तोड़ा और एक नहीं रेखा खींची.
1913 का वो दौर था जब पतिता भी सिनेमा में काम करने को मना करती थी और एक और दौर प्रारंभ हुआजब भारत सुंदरी इसमें आकर अभिनय करने लगी.यह सिलसिला प्रारंभ होता है 1952के भारत सुंदरी नूतन के प्रवेश से जिन्होंने सीमा,मिलन,सुजाता,अनाड़ी,सरस्वतीचंद,मैं तुलसी तेरे आँगन की जैसे फिल्मों में अभिनय किया. इसके बाद 1970 में मिस एशिया पैसेफिक पुरस्कार जीतकर जीनत अमान ने हलचल,हंगामा,हरे रामा-हरे कृष्णा,हीरा पन्ना जैसी फिल्मों में अभिनय किया.इसके बाद 1980 की भारत सुंदरी संगीता बिजलानी ने फिल्म हथियार से 1981की भारत सुंदरी मीनाक्षी शेषाद्री ने पेंटर बाबू और 1984 की जुही चावला ने क़यामत से क़यामत तक,1993 की भारत सुंदरी ने जब प्यार किसी से होता है से अभिनय प्रारंभ किया.1994 में भारत सुंदरी सुष्मिता सेन मिस यूनिवर्स और एश्वर्या राय मिस वर्ल्ड बनी,जिन्होंने लगभग 1996-1997 से सिनेमा में अभिनय करना प्रारंभ किया.ऐश्वर्या राय ने तमिल फिल्म इरुवर और सुष्मिता सेन ने फिल्म दस्तक से अपना फ़िल्मी जीवन प्रारंभ किया.1999की भारत सुंदरी गुल पनाग ने 2003 में धूप फिल्म से फ़िल्मी जीवन प्रारंभ किया.

 सन 2000 में एक बार फिर से भारत सुन्दरियों ने सिनेमा अभिनय के दिशा में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा.लारा दत्ता(मिस यूनिवर्स)प्रियंका चोपड़ा(मिस वर्ल्ड)दिया मिर्जा(मिस एशिया पैसेफिक)ने हिन्दी सिनेमा में प्रवेश किया. जंहा लारा दत्ता ने हिन्दी फिल्म ‘अंदाज’ से तो प्रियंका चोपड़ा ने तमिल फिल्म ‘थामिजहन’ से तो दिया मिर्जा ने ‘रहना है तेरे दिल में’ से अपना फ़िल्मी सफ़र प्रारंभ किया. इसके बाद यह सिलसिला जारी रहा 2001 की भारत सुंदरी सेलिना जेटली ने फिल्म जानशीं से तो  2002 की भारत सुंदरी नेहा धूपिया ने जूली फिल्म से अभिनय में कदम रखा. 2004 की भारत सुंदरी मिस इंडिया यूनिवर्स तनुश्री दत्ता और मिस इंडिया वर्ल्ड सयाली भगत ने क्रमशः ‘आशिक बनाया आपने’ और ‘तुम बिन’ से हिन्दी सिनेमा में प्रवेश किया.2007 की साराह ने भी ‘क्या सुपर कूल हैं हम’ से अपना कैरियर प्रारंभ किया.इसी साल की एक और सुंदरी ईशा गुप्ता ने भी सिनेमा में प्रवेश किया.2008 की मिस इंडिया यूनिवर्स सिमरन कौर ने ‘जो हम चाहें’ से अपना अभिनय सिनेमा में शुरू किया.यह दौर न केवल भारतीय सुंदरियों के साथ है बल्कि अब तो विदेशी महिलायें भी इस तरफ आ रही हैं.

यह बताता है की जो लक्ष्मण रेखा समाज ने 1913के दौर में महिलायों के लिए खीचा गया था जिसको पतिता भी तोड़ नहीं पा रही थी.समय के बदलाव में महिलायों ने खुद इसको तोड़ कर एक नई रेखा खीच ली.अब वो अपनी पहचान खुद बनाती है और कहती है “बादलों से उंची उडान मेरी,सबसे अलग पहचान मेरी” यह पहचान की मनोकामना ने अपने लिए एक नई लक्ष्मण रेखा बनाने की पहल को निरुपित करती है.

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